शीर्षस्थ


सीखने क़ी भावना प्रबल रहे सदा
जीतने की भावना से न शुरुआत करो
छोरों को पकड़ने की दौड़ में खोकर
खुद को न तुम अभिशप्त करो
नैया तो पार सबकी है लगनी 
ये जीवन तो मात्र है एक दैवीय चक्र ही
उलझनों की चादर ओढ़ जो सोते रहे तुम
तो गर्त में खुद को ढकेल हो जाओगे गुम
वर्ना तो शीर्षस्थ होने की भावना से सराबोर
तुम जब जब उलझनों को धता दे कदम उठाओगे
आशीर्वादों के झूले में झूल, परचम लहरा सद्गति को पाओगे

©डॉ अर्चना टंडन

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