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Showing posts from May, 2014

सोच तेरी - मेरी

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      तू कहता है  पैसा ही   सब कुछ है मैं कहती हूँ पैसा कुछ भी नहीं पैसे से आप आदमी खरीद सकते हैं पर विश्वास नहीं पैसे से आप डिग्री   खरीद   सकते हैं पर ज्ञान नहीं पैसे से आप घर खरीद सकते हैं पर अंदर बसा प्यार और शान्ति नहीं पैसे से आप परखनली शिशु पैदा कर सकते हैं पर मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बच्चा नहीं तू कहता है जंग से   दुनिया जीती जाती है मैं कहती हूँ प्यार से दुनिया   जीती जाती है जंग से आप अप ना  झ ण्डा    लहरा     सकते   हैं पर उस जीत में अनगिनित   वीरों   का लहू   होगा जंग से आप जीत हासिल कर सकते हैं जबरदस्ती काबिज हो सकते हैं  पर वो जंग आप जीत कर भी हारते हैं क्योंकि नाम कमाने से जीत नहीं होती   जीत तो नाम कमाने की वजह   और   तरीके   से  होती   है नाम   तो   जैसे   राम का हुआ  वैसे   ही  रावण   का   भी   हुआ नाम   तो   जैसे   ओबामा  का हुआ   वैसे   ही    ओसामा   का   भी   हुआ नाम   से   ज़्यादा   सद्गुण   सत्कर्म   जर

क्या सही क्या गलत सोच का फेर है

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कैसा अजब है ये  दुनिया  का आलम हर इंसान क्यूँ है दूसरे को टोपी पहनाने में मगन  सबको है खुद से वास्ता कम दूसरों  की चिंता अधिकतम पर ये सोच क्या हमें कहीं ले जाएगी या फिर सीधे धरातल या उससे भी नीचे कहीं पहुँचाएगी  क्यों हम अपने आप को नहीं है देख पाते दूसरों को बुरा कह क्यों हैं  हम  सुकून पाते क्या किसी का भी सच कभी कोई जान पाया क्या आदमी खुद को ही कभी पहचान पाया दूसरे की जिम्मेदारी उसकी खुद की है ये जान कर भी हम क्यों दूसरो में रमे हैं क्यूँ हम दूसरों को कम  खुद को ज्यादा आंकने में लगे हैं  जो जैसा बोएगा वैसा ही पाएगा उस के कर्मों का फल दूसरा कभी न बाँट पाएगा ये अगर है सच तो फिर अपने आप को धवल दिखाने के लिए लोग क्यों है दूसरों  इस्तेमाल करते  खुद को बचा दूसरों को फंसा क्यों है वो सुकून पाते  हमें ये  तय   करना होगा कि न कोई सही है न कोई गलत अपने आप में सब सही हैं संभालने में अपनी सल्तनत समय सबको सही और गलत बना देता है मोहरों की तरह इस्तेमाल करवा देता है आज जो सही है कल वो गलत होगा  और आज जो गलत है  कल वो सही होगा ये एक ऐस

परिलक्षित प्रतिबिम्ब

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बेतकलुफ्फी   है   या   कि   बेवकूफी   बर्दाश्त   है   या   कि   बादशाहत   क्यूँ   हम   गैरों   में   ढूंढते   हैं   हल   जब   परेशान   हो   हमारा   अंतर्मन   क्या   गैरों   को   बदलने   से   बदलेगी   ये   परेशानी   या   कि   बनना   होगा हमें   अन्तर्ध्यानी   ? गर   ढूंढेंगे   हम   अपनी   ख़ुशी   दूसरों   को   बदलने   में   तो   नित   नई   समस्या   खड़ी   होगी   इन   जीवन   के   रास्तों   में   --  अर्चना टंडन  

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   ॐ  क्या अमीरी  और  क्या फकीरी   खुशियों   के लिए क्या है ज़रूरी   एक तृप्त मन   और   तृप्त आत्मा   बस इतनी ही दरकार है मेरी,हे   परमात्मा क्या जुस्तजू क्या आरज़ू   क्या रहमतें क्या इबादतें   है अगर विश्वास खुदा कि खुदाई में   तो  फिर  डर   क्यों   इस तक़दीर कि आज़माइश में -- अर्चना