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Showing posts from May, 2018

उसका अदालती फरमान

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आज हम कटघरे में थे शहर उसका, कचहरी उसकी क़ाज़ी उसका, मुख्तार उसका अपना मुख्तार भी कहाँ अपना था मुद्दई भी वो था और कानून भी उसका तो गुनाहगार कौन होता फैसला भी तुरंत आ गया और सज़ा भी मुक़र्रर हुई तयशुदा घेराव को अंजाम देती हुई और हम ने इसे एक ईश्वरीय आपदा मान कर स्वीकार कर लिया और खुद को खुद के आगोश में भर लिया डॉ अर्चना टंडन

साझा दर्शन

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आओ आज एक आज़माइश करें हम अपने अपने किरदार अदल-बदल कर देखें हम कुछ पल मैं तुम्हारे जिस्म में ठहरूँ कुछ पल तुम मेरे जिस्म में तब शायद मैं तुम्हारे लफ्ज़ समझ सकूँ और तुम मेरे समझ सकूँ तुम्हारे बहाव के हर कोण को और तुम मेरे झरने के हर तेज को क्योंकि दैहिक स्वरूप तो दोनों का ही इस वैश्विक विस्तार की ही देन है फिर शायद एक आत्मिक मिलन कायम हो सके मेरे तुम्हारे बीच जो तुम्हारे मेरे विचारों की लक्ष्मण-रेखाओं को समझ सके उन्हें बिना नकारे उसका अधूरा हिस्सा पूर्ण कर सके डॉ अर्चना टंडन