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Showing posts from October, 2014

एक ज़रुरत -- एक अरमान

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हर यात्रा का गंतव्य हो हर कहानी का अंत हो  हर नदी सागर  में मिले   हर ख्वाहिश पूरी हो सके   ज़रूरी तो नहीं  पर हर बेसहारा को सहारा मिले    हर भूखे पेट को रोटी मिले  हर उफनते तूफ़ान को विश्राम मिले  हर बेघर को आसरा मिले   ये कामना है मेरी  हर कोशिश कामयाब हो    हर रास्ता आसान हो  हर रथ के सारथी श्रीकृष्ण हों  और हर उम्मीद को मंजिल मिले ज़रूरी तो नहीं  पर हर बेचैन मन को चैन मिले  सब दुखों को सुख का आवरण मिले   बेचैन करने वाले कष्टों का निवारण हो  और अंदरूनी और बाहरी युद्ध से मुक्ति मिले  ये दुआ है मेरी  हर तारीफ का मकसद हो    हर जीत ख़ुशी में तब्दील हो  दान कर हर बार सुकून ही मिले   की गई हर प्रार्थना स्वीकार ही हो ज़रूरी तो नहीं  पर हर स्त्री की आबरू बची रहे  हर बिलखते बालक को माँ का प्यार मिले  हर समाज को दहेजप्रथा से मुक्ति मिले  हर बालमजदूर को मुफ्त स्कूली शिक्षा मिले  ये इच्छा है मेरी  तो चलें जो ज़रूरी है  उसके लिए कदम उठायें  कुछ संकल्प लें  कुछ बदलाव लायें  चलें कभी किसी ज़रुरतमंद के बच्चे को पढाएं  कामगारों में अपने कभी किसी अपंग को अपनाएं  कभी किसी अनाथाश्रम से बच्चे को अपना

इस रिश्ते को मैं क्या नाम दूं

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न तो थी इश्क की ही चाहत  न ही थी किसी रिश्ते की तलाश फिर ये कैसा पुल था जो बांधे हुए था  एक सिरे को दुसरे सिरे से  हम चल भी रहे थे फिर भी स्थिर थे  बह भी रहे थे फिर भी थमे हुए से थे हर गुजरते पल में दूर कुछ नज़र आता था पास पहुँचने पर फिर एक साए में बदल जाता था  समझ कर भी क्यों न समझ सके हम कभी उफनते एहसासों की लहरों को थामे रहे हर सदी क्या मेल के इस रिश्ते का स्वरूप था कोई तुम्हारे मेरे बीच बह रही इन तरंगों का अर्थ था कोई जन्म तो साथ लिया था हमने और मृत कर विदा ली थी तुमने फिर ये कैसा ईश्वरीय वरदान था जन्म जन्मांतर के बंधन का साथ था कि मिट न सकी रूह से शरीर की दूरी और अगले जनम तक टल गई एक आस अधूरी डॉ अर्चना टंडन