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Showing posts from 2016

सूफियाना होना

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महसूस करा तो उम्र सालों में गुजरी न महसूस करा तो सूफीयाना बन सुलझी   दास्तान थी वो एक अनवरत सफ़र की पहेली थी एक जो उलझी थी आकार उसका, न तो था सीधा न ही टेढ़ा और था भी पूरा सांसारिकता सा उलझा उस सफ़र का फैलाव देख घबराई थी गुत्थम-गुत्था, समेटा-समेटी से पथराई थी हर पल बदलते हालात और उस पर तकती हुई आँखों के सवालात एहसास कराते थे एक अंतहीन सफ़र के आगाज़ का गुज़रते हुए सालों के तेजी से गुज़र जाने का अपने ही अंदाज़ में संभलती संभालती   विघटित होने से बचती चलती रही इस वेश का परिदृश्य समझने के वास्ते तलाशती हुई सैकड़ों रास्ते जो ठहराव दे सके इस अंतहीन सफ़र को सार्थक बना सके तेरे दिए इस परिवेश को जाने कब अंदाज़ सूफियाना हो चला बदलाव के साथ ठहराव सा भी आ गया सांसारिक मृगमरीचिका अब नहीं उलझाती थी भागती हुई उम्र भी अब नहीं डराती थी पलों और वर्षों का तो जैसे एहसास ही ख़त्म हो गया था उलझी पहेली का सुलझा स्वरुप जाने कब अवतरित हुआ था डॉ अर्चना टंडन 

Celebrating demise in life and in Death

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Keep moving, keep dreaming Keep flowing, for that is life  If stuck in the marshes of dreariness Momentum yours, you ought to find  Have we come here to die or to survive Oh yes, definitely to live and survive So keep flowing and keep rejoicing As you go along, hurdles you keep conquering With the life's clock ticking  Fear of death you ought to keep surmounting Dawning of this realisation Will expose you To newer crests and troughs of  unknown sounds That are yet to be orchestrated Till crests wither and troughs rise To end up again at levelled grounds Yes, death is again inevitable Learning is never done with Rebirths are the rule  So keep enjoying life And celebrating death  Till finally you start recognising  The soulful power within you Where stillness of the ocean becomes your nature And waves of an ocean show your character As you move along the path of existence And reach the pyre  following the path of least resistance Dr Archana Tandon

खामोशी का शोर भरा दर्द

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शोर में भी है एक ख़ामोशी समझने की कोशिश करना कभी माँ की बडबडाहट के पीछे की ख़ामोशी विधवा की पुकार की तड़प की ख़ामोशी बलात्कारी द्वारा प्रताडित आत्मा के क्रंदन की ख़ामोशी वर्षों लाला के कर्ज के बोझ तले दबे गरीब के विद्रोह के स्वर की ख़ामोशी यहाँ उस ख़ामोशी की बात नहीं हो रही है जो शतरंज के खिलाडी की होती है उठा पटक के दावों वाली मेरा- तेरा, इसका-उसका के गुणा भाग वाली न ही उलझनों को उलझाती सुलझे हुए को उलझाने के रास्ते तलाशती ख़ामोशी की   बल्कि उस ख़ामोशी की बात हो रही है जो हर भूकंप ,हर ज़लज़ले हर दुर्घटना, हर युद्ध के बाद देखी जा सकती है   जैसी भोपाल गैस त्रासदी के बाद के शोर में थी ............... कोशिश करो कि पहचान सको इस शोर में छुपी खामोशियों को और इस खामोशी के पीछे छुपे दर्द को शांत प्रवृत्ति वाली दरिया जब जब रास्ते के पत्थरों से टकराएगी शोर, सन्नाटे को चीरता हुआ एक सन्देश देगा संदेश एक असहनीय तड़पाने वाले दर्द का ©डॉ अर्चना टंडन

दौर चुनावों का

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सत्ता के गलियारो में आज फिर क्यों शोर है लगता है सिंघासन डगमगाने का चल रहा दौर है कौन देगा किसको पटकनी , जीत दर्ज करा रहेगा वोटों का धनी हर चौराहे पर इन्ही चर्चाओं का दौर है जात पात, भाषा, पंथ गिना नेताओं में आज फिर उपजी होड़ है लगता है चुनाव नहीं यह कोई जंग का मैदान है अपनत्व का नहीं यहाँ नामो निशान है टीवी, अखबार सोशल साइट्स और मीडिया पर शोर है प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष आज फिर इन्ही चर्चाओं का दौर है यहाँ भाई भतीजावाद अपने चरम पर है दामन थामना और पटकनी देना, यहां आम है जिनके शब्दकोष में ईमान और भरोसा शब्द रहे न कभी ऐसे ईमान और रसूक वालों की यहाँ होड़ है सत्ता के गलियारो में आज फिर क्यों शोर है लगता है सिंघासन डगमगाने का चल रहा दौर है फिर क्यूँ जाए आम जनता वोट देने बीके हुए चुनावों का बहिष्कार वह क्यूँ न करे जहाँ कलुषित चरित्र वालों का जोर है और सद्चरित्र को कलंकित दिखाने का मच रहा शोर है आखिर कब तक ये खंडित व्यक्तित्व वाले ही चुनाव में दिखेंगे जो मुंह में राम और बगल में छुरी रख अपना रसूक कायम करेंगे सब बुद्धिजीवियों को जगाने का च

Understanding the word democracy

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Democracy is a game of fools ...said by a great thinker long back .... and he was not wrong in saying so .... The cancerous situation of black money, booth capturing, paid / manipulated voters, casteism,etc etc ...is for all of us to see ... Can we say that Democracy breeds manipulators ? But we can understand that only democracy preserves the rights of each individual and so is the most desired mode of governance if each individual becomes aware of the matters and the constitution is followed word by word without resorting to appeasement and manipulations . For this we need a strong leader who believes in and is capable of taking decisions as the head of a democratic nation and is a nationalist and has the power to implement the just conclusions arrived at through open discussions and debates . With increasing internet awareness and it reaching remote areas, cross sectional voting percentage can be increased if we make voting process (not only for candidates but for important d

The untouchables

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The old , The widows living a life  As if residing in prisons  Yes ,I had witnessed a group of them Going back as they were After prayers In Mathura from a temple  To their abode  Which was an ill lit building Bald heads ,white sarees Spelling their doomed state  I tried to start a conversation But they had nothing to say  Giving me a vacant look They walked away  One of them  Seemed to have some life left I approached her And she softly related  The hardships they faced As they remained caged To the mercy of few moneyed Who used them  And their conditions  To convert their funds To charitable trusts …. Dr Archana Tandon

Conserve forests

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पेड़ की कहानी उसने कभी किसी को पराया न समझा अपना ही समझा  छाँव दी ,फल दिए ,फूल दिए  कटने पर भी आह न की इस्तेमाल होता रहा वो लोगों के लिए जिन्होंने एवज में उसके वाहवाही कमाई  और फिर उस पर ही आरी चला  उसे पराया कर दिया डॉ अर्चना टंडन

परिपेक्ष्य

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हमसे वो बोले कि मैडम अपनी भाषा सुधारिये  हम आज तक नहीं समझ पाए  कि उनको हमारी सुसंस्कृत भाषा खली  या फिर भाषा की दिशा  या सच्चाई की परिभाषा वक़्त किसी का नहीं होता  आज तुम्हारा कल मेरा चरित्र अपना होता है  व्यक्तित्य अपना होता है  जो न कोई चुरा सकता है  न अपना सकता है  उसपर नाज़ करो  उसकी रक्षा करो डॉ अर्चना टंडन 

भारत का पुनः सोने की चिड़िया बनना ?

मेरी ( layman in finances ) की एक सोच 500 और 1000 के नोट बंद हो गए । लोग या तो पैसा बैंक में जमा कर रहे हैं या सोना खरीद रहे  हैं । बैंक में जमा करेंगे तो एक तो money accounted होगा ।सरकार को टैक्स मिलेगा । दूसरा सुप्त पैसे का उपयोग entrepreneurs को loan देने व विकास की योजनाओं में लगाने में होगा । देश का विकसित देशों से loan का भार कम होगा और money generation का विस्तार हो पाएगा , job generation होगा तो unemployment भी tackle हो पाएगा । सोने में investment यानि सोने का वापस घरों में से लाकर में जाना । भारत का पुनः सोने की चिड़िया बनना ... जहाँ तक मेरी knowledge है मुद्रा का छपना सोने के भण्डार पर निर्भर करता है । I definitely see lockers as the next target to increase the amount of currency that govt can get printed for unaccounted gold to lessen the loan burden on India ... वाह मोदीजी आपने अपने एक वार से न केवल गलत कामों में लगे काले धन पर रोक लगा दी बल्कि भारत का राजस्व बढ़ा loan का भार कम करने का व भारत को पुनः सोने की चिड़िया बनाने का इंतज़ाम भी कर लिया। मोदीजी की विकास-शील सो

सठियाना

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हम जो सठिया गए हैं शायद new born हो चले हैं हममे से कुछ तो preterm हो  Incubator में temp control के लिए पड़े हैं और कुछ ऑक्सीजन mask लगा जिंदगी के लिए जूझ रहे हैं कुछ newborn तो मदमस्त हाथ पैर फ़ेंक खुद हंस दूसरों को हंसा जीवन का एक नया अध्याय रच पा रहे हैं तो कुछ चुपचाप पड़े चारों तरफ सर घुमा निगाह को कहीं एकटक रुका संसार का गणित समझने की कोशिश में लगे हैं कुछ तो चेहरे पर विभिन्न भाव दर्शा कभी मुस्कुरा जैसे पिछली यादों में खो से गए हैं ये परिभाषाएं newborn,teenage, adult, old age हमें परिभाषित नहीं कर सकतीं सीमित नहीं कर सकतीं Moron व Progeria दर्शाती हैं कि इंसान की शारीरिक व मानसिक शक्ति की सीमा को बाँधा नहीं जा सकता उम्र से प्रत्येक जीवन की सीमा एक ईश्वरीय वरदान है तरीके अनेक हैं सलीके अनेक हैं पर पैमाना सबका ऊपर से ही तय होके आता है डॉ अर्चना टंडन

उड़ान

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तेरी उड़ान देख  प्रफुल्लित होती हूँ मैं मुरझाती नहीं  मेरा अस्तित्व फिर लेता है  एक नया स्वरुप प्रस्फुटित होती हैं  रंग-बिरंगी स्वप्न स्वरूपी  रूपहली कोमल  टहनियां व पत्तियां जो दर्शाती हैं  मेरा प्रेम, मेरा विश्वास तेरे आत्म बल पर और इन्तज़ार करती हैं अगले वसंत का  तेरी एक नई उड़ान का  एक नई उपलब्धि का डॉ अर्चना टंडन 

कलयुगी श्रीकृष्ण

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वो उन्हें अपना ही समझते थे कि ज़ख्म जिन्होंने गहरे दिए गैरों का इस्तेमाल कर विषैले तीर दाग दिए कहते हैं सल्तनत का नशा  सब रिश्ते भुला देता है हर शख्स को एक मोहरे में तब्दील करवा देता है उनकी ये बदकिस्मती रही कि वार उनपर हर-बार पीठ पर ही हुए और समझते हुए भी  वारों को वो आत्मसात करते चले गए वार पर वार ने न तो उन्हें विचलित ही किया न ही संतुलन खोने दिया गोया रुख उन्होंने सुदामा बन श्रीकृष्ण द्वार का हर बार ही किया जान कर भी अनजान रहे वो कलयुगी श्रीकृष्ण और सतयुगी श्रीकृष्ण का अंतर हर वार उनका भुला  वो सहर्ष चलते गए समानांतर सतयुगी श्रीकृष्ण ने सल्तनत को बचाने की खातिर  साथ सात्विक मूल्यों का दिया  अर्जुन का युद्ध में मार्गदर्शन ईमान धर्म का साथ देने के लिए किया  कलयुगी श्रीकृष्ण तो हमेशा कलयुगी ही रहा उसने हर शख्स का इस्तेमाल  सल्तनत में अपनी पैठ  बनाए रखने के लिए ही किया डॉ अर्चना टंडन

अक्स

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टूटे हुए आईने में देखकर  आज,   वो अक्स अपना सुलझा सके जीवन की उलझनों को समझकर ईश्वरीय आशीर्वाद का मर्म  कि आइने के टूटने से  कभी किसी का अक्स नहीं बदलता  जैसे कि नहीं बदलता  कभी  जंग खाने से  इस्पात का घटक स्वनिर्माण व स्व-आकलन  तो स्व-निमित्त है आइना दिखाने वाले से कहीं  ज़्यादा साहसिक और अर्थपूर्ण  डॉ अर्चना टंडन

तलाश रिश्तों में रिश्ते की

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गैर शब्द को कभी आत्मसात न किया अपेक्षाओं को भी कुचला था सभी जिम्मेदारियों के एहसासों में खुद को खोकर तुममे खुद को पाने का अरमान पाला था कभी पर कहते हैं न ,सपने सपने होते हैं घनेरे हों या सुनहरे ,उनके अर्थ नहीं होते  प्रतिबिम्ब और परछाईं तो अपनी हो सकती है पर चित्रित चरित्र हमेशा पराए ही होते हैं अपना समझा था सो शिकायत भी की परायों से कहने की तो हिम्मत ही नहीं होती  इसे भी तुम मेरी गुस्ताखी समझ लेना और माफ़ कर देना खुद को क्योंकि तुम्हारे होने से ही तो मैं हूँ मेरे होने से मैं नहीं  -- डॉ अर्चना टंडन

फिर बही बयार

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न आसमान की है चाहत  न ज़मीन पर ही गुमान खुदा और ज़मीर की है आशनां ये   मगर है नहीं ये बेजुबान आज पैमानाए-लुफ्त उठाने की दरकार है हाले-दिल बयां करने से आज इनकार है वो शाम आज ज़माने बाद आई है   कि खुद से गुफ्तगू का आज इंतज़ार है न है वफ़ा की इल्तज़ा  न ही है रहमो करम की गुज़ारिश राहे सफ़र में बेख़ौफ़ चलने दो हमें बस इतनी सी है सिफारिश हक़ से हक़ की लड़ाई में उसूल और घरानों की क्यों दे रहे हो दुहाई शराफत और इंसानियत को देकर तवज्जो पाट दो हर गहरी से गहरी खाई डॉ अर्चना टंडन 

A mother gets justice (Dedicated to Mrs Neelam Katara)

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She was crying for justice For damaged was her inner core The prayers were not enough To quieten her bleeding sore They stood by the story That they had conjured Though no one did believe it Who really was mature They tried their level best  To bribe the judges and the court And made them dance to their tunes To protect their own fort A lot of efforts were put in by them , To get the people confused Pleas put forth increased her pain And left her all the more bruised To her, someone’s morals were the real thing And she kept herself afloat by her fearless tidings With all the confidence she continued with her honest march As they retracted themselves into many a hidings God is there and he is the real protector He is the ultimate judge and the real benefactor People don’t go far who are farce Though saying that godly decisions interrupt them may sound harsh So with faith in fate, she kept on marching With immense belief in her divine self, she

मनन

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जागो ,खोजो और पाओ अपने आपको इन गडमड रास्तों में खोकर भी ढूंढ लो अपने आपको मत भूलो की तुम भी एक हस्ती हो   चाल में सदा तुम्हारी एक मस्ती हो कभी न उसूल तुम्हारे सस्ते हों और कंधे पर तुम्हारे अपने ज़मीर के बस्ते हों चलते रहो चलते रहो अनवरत   खुदाई की चादर बिछाते परत दर परत   डॉ अर्चना टंडन

सूत्रधार ( मोदीजी को समर्पित )

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बिलखते बच्चों व सिसकती बेवाओं  के लिए जिम्मेदार  ये आतंकवाद परोसते ,टूटते प्रदेश व   बिखरे देश बिखरते  अरमानों और टूटती आशाओं  को दर्शाते ये बिखरे आंसू व बिखरे केश उजड़ते जंगलों ,बेघर हुए जीव - जंतुओं  को हकीक़त बनाती व्यापारिक सोच  नदियों , झरनों  व पर्यावरण नष्ट कर  जो आकाओं की लेते हैं ओट  उन सभी को आवश्यकता है इस सूत्रधार की  जो इन्हें एक सूत्र में पिरो सके  इनकी व्यथाओं  के लिए जिम्मेदार  आतंकवाद को थाम सके  अरमानों को दिशा दे सके  बिखरे मोतियों का दर्द समझ सके  जंगलों का स्वरुप लौटा जीव- जंतुओं को बसा सके  नदियों को कलकल बहा सके  झरनों का यौवन लौटा सके  आकाओं को ज़हीन बना सके  और व्यावसायिकता को  आध्यात्मवाद का चोला पहना सके  डॉ अर्चना टंडन