फिर बही बयार
न आसमान की है चाहत
न ज़मीन पर ही गुमान
खुदा और ज़मीर की है आशनां ये
मगर है नहीं ये बेजुबान
आज पैमानाए-लुफ्त उठाने की दरकार है
हाले-दिल बयां करने से आज इनकार है
वो शाम आज ज़माने बाद आई है
कि खुद से गुफ्तगू का आज इंतज़ार है
न है वफ़ा की इल्तज़ा
न ही है रहमो करम की गुज़ारिश
न ही है रहमो करम की गुज़ारिश
राहे सफ़र में बेख़ौफ़ चलने दो हमें
बस इतनी सी है सिफारिश
हक़ से हक़ की लड़ाई में
हक़ से हक़ की लड़ाई में
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