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Showing posts from April, 2019

तेरा मेरा रिश्ता

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वो नहीं पूछते कि मेरा वजूद क्या है वो नहीं पूछते कि मैं किसलिए अपनी दूरबीन लिए उनका पीछा करती हूँ उन्हें नहीं मतलब मेरे मक़सद से मेरे रुतबे से मेरे स्वाभाविक या अस्वाभाविक तौर तरीकों से वो तो मगन हैं अपनी ही दुनिया में तल्लीन अपनी रोजी रोटी की जुगत लगाने में घोंसले को एक आरामदायी रूप देने में अपने नन्हे मुन्नों को इस दुनिया में ला तौर तरीके सिखाने में झाड़ियों से, दरख्तों के छेदों से पत्तों से और कई बार दूर आसमान से वो मुझे तकते हैं जैसे कह रहे हों आओ ,आ जाओ दूर से क्यूँ तकती हो हमें किसे दिखाओगी ये तस्वीरें उन्हें जो नहीं जानते उस तपिश को जो हम बेघर झेलते है उन्हें जो नहीं जानते कैसे तिनका तिनका बटोर अपनों को लाया जाता है इस दुनिया में उन्हें जो नहीं जानते रोज भूख को मिटाने के लिए न जाने कितने चक्कर लगाने पड़ते है उन्हें जो नहीं जानते की भूख, प्यास ही एकमात्र ज़रूरत है…. वो जो बांटनें में लगे हैं धरती को रेखाओं से, सीमाओं से दीवारों से, कुर्सी के अरमानों से उस धरती को जो एक देन है ईश्वर की हम सबके लिए

मैं ऐसी क्यों हूँ

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सतही लगाव को आत्मसात नही कर पाती इसे बचकानापन कह लीजिए मेरा किसी को अपना मानने का मतलब उसे अपना हिस्सा मानना है मेरे लिए Friends are acquaintances जैसे वाक्य समझ तो आते हैं किन्तु ग्राह्य नहीं मुझे हाँ मैं सांसारिक नहीं हूँ अपाच्य से किनारा कर पाच्य की खोज और इस प्रक्रिया का विश्लेषण मेरे अंतःकरण को कहीं शांत करता है सांसारिकता में खुद को खो भटकने से अच्छा है कि इस मनमोहक प्रकृति की गोद में विचर कर खुद को पा जाऊं डॉ अर्चना टंडन

सम्मोहन में छिपी है विरक्ति

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The link to where I recite the poem and try to elaborate on my interpretation of it. https://youtu.be/WL50gmZobV0 बहुत बड़ी हो तुम फैली, बहुरंगी विस्तार में अपने कोणों को समेटे हुए मैं भी तो एक प्रकार हूँ तुम्हारे आकार का समझना चाह के भी नही समझ सकती तुम्हें कभी सिर्फ अपलक निहारना तुम्हारी गति से अचम्भित होना तुम्हारे रंगों में डूब जाना तुम्हें क़ैद कर लेना और संजोना कहीं भीतर तक तर कर जाता है मुझे प्यास बुझती नहीं पर तृप्त हो जाती हूँ मैं कहीं सम्मोहित हो निकल पड़ती हूँ ढूंढने फिर एक नया कोण जो धीरे धीरे अपना आकार खो कभी फैल कर वृत्त में, कभी सिमट कर शून्य में और कभी एक लकीर का रूप धारण कर सुलझा जाता है मेरे अनेक प्रश्नों को और दे जाता है एक निर्देश सम्मोहन से गुजरते हुए विरक्ति का डॉ अर्चना टंडन