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शीर्षकहीन कृति

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  शब्दों के अर्थ होते हैं शाब्दिक न करो मुझे स्वरूपों के आकार होते हैं आकृत न करो मुझे समूहों के प्रकार होते हैं गठित कर न बाँधो मुझे निर्माण की अभिकल्पना होती है अभिकल्पित कर स्वरूप न दो मुझे विवरण भी एक व्याख्या है आख्या कर स्वरूपित न करो मुझे आदि और अंत की परिभाषाएँ होती हैं परिभाषित न करो मुझे जो अल्पकालिक है जो अपना है ही नहीं उस चोले से न आँको मुझे भला सर्व-विद्यमान सर्वकालिक, सार्वभौमिक विस्तृत स्वरूप की  कोई आख्या होती है कोई आकार होता है कोई प्रकार होता है कोई दायरा होता है डॉ अर्चना टंडन