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Showing posts from December, 2016

सूफियाना होना

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महसूस करा तो उम्र सालों में गुजरी न महसूस करा तो सूफीयाना बन सुलझी   दास्तान थी वो एक अनवरत सफ़र की पहेली थी एक जो उलझी थी आकार उसका, न तो था सीधा न ही टेढ़ा और था भी पूरा सांसारिकता सा उलझा उस सफ़र का फैलाव देख घबराई थी गुत्थम-गुत्था, समेटा-समेटी से पथराई थी हर पल बदलते हालात और उस पर तकती हुई आँखों के सवालात एहसास कराते थे एक अंतहीन सफ़र के आगाज़ का गुज़रते हुए सालों के तेजी से गुज़र जाने का अपने ही अंदाज़ में संभलती संभालती   विघटित होने से बचती चलती रही इस वेश का परिदृश्य समझने के वास्ते तलाशती हुई सैकड़ों रास्ते जो ठहराव दे सके इस अंतहीन सफ़र को सार्थक बना सके तेरे दिए इस परिवेश को जाने कब अंदाज़ सूफियाना हो चला बदलाव के साथ ठहराव सा भी आ गया सांसारिक मृगमरीचिका अब नहीं उलझाती थी भागती हुई उम्र भी अब नहीं डराती थी पलों और वर्षों का तो जैसे एहसास ही ख़त्म हो गया था उलझी पहेली का सुलझा स्वरुप जाने कब अवतरित हुआ था डॉ अर्चना टंडन 

Celebrating demise in life and in Death

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Keep moving, keep dreaming Keep flowing, for that is life  If stuck in the marshes of dreariness Momentum yours, you ought to find  Have we come here to die or to survive Oh yes, definitely to live and survive So keep flowing and keep rejoicing As you go along, hurdles you keep conquering With the life's clock ticking  Fear of death you ought to keep surmounting Dawning of this realisation Will expose you To newer crests and troughs of  unknown sounds That are yet to be orchestrated Till crests wither and troughs rise To end up again at levelled grounds Yes, death is again inevitable Learning is never done with Rebirths are the rule  So keep enjoying life And celebrating death  Till finally you start recognising  The soulful power within you Where stillness of the ocean becomes your nature And waves of an ocean show your character As you move along the path of existence And reach the pyre  following the path of least resistance Dr Archana Tandon

खामोशी का शोर भरा दर्द

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शोर में भी है एक ख़ामोशी समझने की कोशिश करना कभी माँ की बडबडाहट के पीछे की ख़ामोशी विधवा की पुकार की तड़प की ख़ामोशी बलात्कारी द्वारा प्रताडित आत्मा के क्रंदन की ख़ामोशी वर्षों लाला के कर्ज के बोझ तले दबे गरीब के विद्रोह के स्वर की ख़ामोशी यहाँ उस ख़ामोशी की बात नहीं हो रही है जो शतरंज के खिलाडी की होती है उठा पटक के दावों वाली मेरा- तेरा, इसका-उसका के गुणा भाग वाली न ही उलझनों को उलझाती सुलझे हुए को उलझाने के रास्ते तलाशती ख़ामोशी की   बल्कि उस ख़ामोशी की बात हो रही है जो हर भूकंप ,हर ज़लज़ले हर दुर्घटना, हर युद्ध के बाद देखी जा सकती है   जैसी भोपाल गैस त्रासदी के बाद के शोर में थी ............... कोशिश करो कि पहचान सको इस शोर में छुपी खामोशियों को और इस खामोशी के पीछे छुपे दर्द को शांत प्रवृत्ति वाली दरिया जब जब रास्ते के पत्थरों से टकराएगी शोर, सन्नाटे को चीरता हुआ एक सन्देश देगा संदेश एक असहनीय तड़पाने वाले दर्द का ©डॉ अर्चना टंडन