सूफियाना होना




महसूस करा तो उम्र सालों में गुजरी
न महसूस करा तो सूफीयाना बन सुलझी  

दास्तान थी वो एक अनवरत सफ़र की
पहेली थी एक जो उलझी थी
आकार उसका, न तो था सीधा न ही टेढ़ा
और था भी पूरा सांसारिकता सा उलझा

उस सफ़र का फैलाव देख घबराई थी
गुत्थम-गुत्था, समेटा-समेटी से पथराई थी
हर पल बदलते हालात
और उस पर तकती हुई आँखों के सवालात
एहसास कराते थे एक अंतहीन सफ़र के आगाज़ का
गुज़रते हुए सालों के तेजी से गुज़र जाने का

अपने ही अंदाज़ में संभलती संभालती  
विघटित होने से बचती चलती रही
इस वेश का परिदृश्य समझने के वास्ते
तलाशती हुई सैकड़ों रास्ते
जो ठहराव दे सके इस अंतहीन सफ़र को
सार्थक बना सके तेरे दिए इस परिवेश को

जाने कब अंदाज़ सूफियाना हो चला
बदलाव के साथ ठहराव सा भी आ गया
सांसारिक मृगमरीचिका अब नहीं उलझाती थी
भागती हुई उम्र भी अब नहीं डराती थी
पलों और वर्षों का तो जैसे एहसास ही ख़त्म हो गया था
उलझी पहेली का सुलझा स्वरुप जाने कब अवतरित हुआ था


डॉ अर्चना टंडन 


Comments

Popular posts from this blog

खुद्दारी और हक़

रुद्राभिषेक

आँचल की प्यास