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Showing posts from September, 2020

मातृभाषा का वात्सल्य

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हृदय धड़कता है उत्तेजित हो रक्त संचारित होता है हिंदी में सृजित हर रचना से जब वात्सल्य माँ सा मिलता है सुनकर हिंदी उमड़ती हैं भावनाएं लिखने को हिंदी मचलती है कोशिकाएं विचारों के देवनागरी में लिप्यांतरित होने से सुकून रूह को मिलता है हिंदी में सृजित हर रचना से जब वात्सल्य माँ सा मिलता है बाल्यकाल से वृद्धावस्था तक  हर काल है हिंदी में जिया  मात्राओं के गलियारों में खो हिंदी के वैज्ञानिक कोण को समझा उम्र का हर दशक रहा समर्पित हिंदी को क्योंकि हिंदी में सृजित रचना से वात्सल्य माँ सा मिलता है हिंदी है तो भाषाओं में ही एक भाषा पूरी करती है ये अर्थपूर्ण वार्तालाप की अभिलाषा रूप अनेक विभिन्न प्रदेशों में इसके गीतों कहानियों के सृजन से हैं जो फलते हिन्द देश की हिंदी है हम सबको प्यारी क्योंकि हिंदी में सृजित हर रचना से वात्सल्य माँ सा मिलता है डॉ अर्चना टंडन

संताप क्यों हो करते तुम

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संताप में घिर खुद को क्यों हो खोते तुम अवसाद में डूब क्यों हो रोते तुम सुनहरी एक सुबह का इंतज़ार करो  व्यवधानों को परे हटा ईश्वर में विश्वास रक्खो काली अंधियारी रातों की भी  सुनहरी सुबह तो होती ही है घुटन भरी ज़िन्दगी को भी  कभी तो सांसें मिलती ही हैं प्रेम में हारे युगल की कहानी की भी फिर सुहानी शुरुआत होती है बुढ़ापे की कांपती देह की सहारे की आस भी निश्चित ही पूरी होती है समय के बदलने की तू भी उम्मीद धर आत्मविश्वास से लबरेज़ तू लंबी कुलांचे भर ईश्वरीय शक्ति में तू अटूट विश्वास रखकर चल अब मुस्कुरा तू संताप को परे हटा कर ©डॉ अर्चना टंडन

सपने

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सपने जब सच हुए तो लगा कि अब क्या  समापन रेखा के उस पार क्या होगा खालीपन का एहसास हुआ और एक नए सपने ने जन्म लिया कुछ सपने ऐसे थे  जो बुनते बुनते ही खत्म हो गए थे और दर्द का एहसास करा गए थे उन्हें भुलाने के लिए सपने तो बुनने ही थे जब तक जिंदा हैं सपने देखना और  उन्हें पूरा करने में जुट जाना ही तो ज़िंदादिली की निशानी है सपनों का अंत तो मौत है सपनों में डूबना तल्लीनता में खोना ऐसा हो कि सपना मायने रक्खे  पूरा होना या अधूरा रहना नहीं फिर तो जीवन में भी मोक्ष और मौत में भी मोक्ष ©डॉ अर्चना टंडन

Facing the unseen

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  Dream I did to plan for the future unseen  By exploring the glorious past and visualising the future scene Dive I did into the legends of traditional history  To clear the mist of future without getting jittery For the past was so very rich Brimming with evolutionary sagas   That provided to me an insight  To deal with the life's enigmatic melodramas Such a search did assure me a sanctified future Turning the unseen to be an inexhaustible treasure I got up from the coffee table fully convinced That it was this "Vikramaditya's throne" Which was pulling me out of the abysmal abyss ©Dr Archana Tandon

Home to me is

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Home should be a a valued domain A place where ambitions are not slain The abode of thine should be A place of virtues Where values that the world thinks are impractical and idealistic Are cherished, ingrained and valued Faith and truthfulness  Should form the foundations of this temple of thine Empathetic attitude is sure to make generations align It is here that avoiding conflicts and confrontations Will bring with it peace and tranquil eternal To make one feel at home, and To win over the conflicts that lie external Spiritual thinking should be The essence of this homely existence Helping one wade through the sea of life Encountering minimal resistance ©Dr Archana Tandon

Trial of a betrayal

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Was it a trial Awaiting a betrayal Or was it a walk To test the talk They walked on together Enjoying the crescendo Trying to sheepishly peep in Through their heart's window Testing and trying each other  They amusingly carried on Courtesy their brains Rather than their brawn The realisation of truth Had never been so mature Both were honouring a relationship  Whose core was so pure Mutual respect and growth Formed the axis of this new age relationship Which helped them gain an equilibrium Without falling prey to a guilt trip  ©Dr Archana Tandon

धोखे का फलसफा

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  धोखे के अंधियारों को मिटा धोखे से निपटना सीखा नुक्सान बर्दाश्त कर बिना शिकवा शिकायत के धोखेबाजों से किनारा करना सीखा दूसरे की कारस्तानियों पर बिना खीजे रास्ता बदल, गुज़रना सीखा अगले के धोखे को उसका खुद से धोखा समझ उसे उसकी मजबूरी मान माफ करना सीखा बिना समझौता करे धोखे के फलसफे को समझ परिदृश्य में लोगों की मनोदशा को भाँपना सीखा इस तरह धोखे के चक्रव्यूहों से खुद को बचा  आज़ादी पा खुद से खुद में जीना सीखा डॉ अर्चना टंडन

ध्यान

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आखें बंद कीं ध्यान लगाया  सहसा एक ख्याल सा मन में आया  बेटी  के लिए सामान भेजना था  मैंने उसे परे हटा फिर गोता लगाया  इस बार बेटे  का चेहरा सामने आया  जैसे कह रहा हो मम्मी बताइए कैसे करूँ  मैंने फिर अपने आप को समझाया  अरे इन उफनती लहरों पर ही तो काबू पाना है  गहरी सांस लेते हुए शून्य में जाना है  ध्यान को मैंने फिर से केन्द्रित किया  पीठ सीधी कर फिर उन पहाड़ों  झरनों उगते सूरज का मनन किया एक क्षण को सुकून महसूस हुआ  फिर बेटी का विचार आया जिसे मैंने आने दिया और फिर जाने भी दिया  बेटे के कैरियर का भी आया  उसको भी आ कर आगे बढ़ने न दिया  अब तो ध्यान केंद्रित था  जिस्म से अलग थलग खड़ी थी मैं  अपने आप को भी  देख पा रही थी अब  सुना था जिस्म से रूह तक का रास्ता टेढ़ा होता है  ध्यान ही एक रास्ता है जो सीधा वहां तक पहुँचता है  वो सीधा रास्ता साफ़ दिखाई दे रहा था  दीख रहा था ये परेशनियाँ अलग होते ही अपनी नहीं लगतीं  ये तो इस शरीर से जुडी हैं हमारी ही बनाई हुई हैं  हर समस्या का सुलझा स्वरूप तो  समस्या के साथ ही जन्म ले लेता है  ईश्वर द्वारा तय