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Showing posts from July, 2020

आभासी दुनिया और प्रेम

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प्रेम वर्णित नहीं हो सकता प्रेम अचम्भित कर सकता है इस डिजिटल दुनिया में ये विस्तृत हो कर भी केंद्रित हो सकता है प्रेम की एक नई परिभाषा जन्म ले रही है जिसने उम्र, लिंङ्ग, धर्म और जात के मायने ही बदल दिए हैं दिमागी तरंगों के मेल ने गाँवों, शहरों, देशों की सीमाओं को पार कर  अजब से रिश्ते गढ़ दिए हैं अंतर्मुखी लाभान्वित हैं इस  नवजात संसार में अपने में सीमित रह वो उड़ान भर रहे हैं कुछ दूर बैठे अपने जैसों में खुद को देख पा रहे हैं इस विशाल सभागार में ज्ञान, मेल मिलाप, सतरंगी ,रुपहली विधाओं की बरसात,  खुशी, क्रोध, भय सभी कुछ तो विद्यमान है संसार जब भौतिक भौगोलिक के साथ साथ आभासी हो चला है तो प्रेम भी अपनी  व्याख्या का दायरा बढ़ा, परिभाषा बदल एक नए रूप में अवतरित हो रहा है। डॉ अर्चना टंडन ( Published in the anthology- आभासी दुनिया के अनोखे रिश्ते )

Lost and Found in the Digital Era

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Somewhere she had lost herself In the dungeons of the world so unreal Her thought process being different She could never understand the deals empyreal In the real world, the meanings conveyed by expressions Lacked genuineness In the long run the contradictions that followed Brought out the resultant ineptness With digital era emerging The world became a small place Emotionally matching minds Were discovered possessing all the grace Interactions were easier On a daily basis without physical presence Which provided the aching soul   The desired solace and salvation intense She had lost herself in the maze  Of the prevailing interpretations As the inhabitants of this globe Thrust on her their declarations Digital era helped her Rediscover her orbit To revolve in synchronisation Brimming with subtle philosophical ambit Dr Archana Tandon

परिवर्तन

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सोचो अगर परिवर्तन का नियम न होता तो क्या होता अंधियारी रात के बाद सुनहरी सुबह न होती दुख के बादलों के बीच सुख की रुपहली रोशनी न दीखती नौनिहाल की अवस्था वृद्धावस्था की बुद्धिमत्ता कैसे प्राप्त करती ये तो प्रकृति का नियम है एक संतुलन कायम रखने का हर प्रकार को एक अद्भुत आकार देने का उत्क्रमणीय या अनुत्क्रमणीय तरीके से अवस्था में बदलाव लाने का ज़िन्दगी के द्वी आयामी स्वरूप से सामंजस्य बिठाने का इसलिए कहती हूँ बदलाव के नियम में तुम भी ढल जाओ रोते को हँसाओ,गर्त में डूबते हुए को बचाओ स्याह सामाजिक कुरीतियों के दंश को मिटाते रहो परिवर्तन ला सामाजिक उत्थान का बीज बोते रहो डॉ अर्चना टंडन

शह और मात

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पता नहीं क्यूँ पर शह और मात का खेल उसे भाया न कभी  चाल भी दूसरों को मात देने की खेल न पाया वो कभी अपने ही रंग ढंग में उसने अपना खेल खेला सदा लोगों को अपने संग जोड़ अनोखा ही संसार रचा सदा पढ़ने पढ़ाने को सीखने सिखाने को आतुर वो दौड़ लगाता रहा सार्वजनिक उत्थान के लिए हरदम जीत के लिए नहीं ना ही कीर्ति, यश या वैभव की मंशा से उठे थे कभी उसके कदम अरे ऐसे विरले शख्स तो जन्म लेते हैं ये दर्शाने के लिए  कि सपने पूरे करने की ज़िद भी पालो तो पालो  खुद से जीतने के लिए  न पालो इसे कभी भी शह और मात के खेल के लिए  जानते हैं वो शख्स कौन थे जो ये शिक्षा दे गए वो हमारे ग्यारहवें राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम थे थे तो वो भारत रत्न से सम्मानित एक एयरोस्पेस इंजीनियर  किंतु अपने आपमें वो एक सम्पूर्ण संस्थान थे © डॉ अर्चना टंडन

Our Lighthouse

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As I stood gazing at the light house at Cape Point I could visualise it's strength by it's majestic height Providing a sense of hope by it's glowing light To ships and vessels on a dingy night There stood Jai looking at the distance markers on the pole From these cities sailed ships with Cape Point as their goal Suddenly the thought equating him with the light house struck me As I gazed at the gleam in the eyes of the figure lordly He had always been the perfect guiding force  To friends and family near and far away They looked up to him for his rational vision Which helped them to finally arrive at a sensible conclusion © Dr Archana Tandon

अहंकार

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अहंकार शब्द है  अहम् और कार का योजन अवतरण जिसका कराता है स्व विनाश का उद्गमन विखंडित करके इस शब्द को निकाल दें अगर हम अहम् को और कार यानी कृत्य में जुट जाएँ तो द्वेष क्रोध और घृणा से मुक्ति पा क्षमा, दया और करुणा का समागम कर अहंकार से मुक्ति पा शायद निरंकार का रूप पा जाएँ © डॉ अर्चना टंडन

बरकत उन हाथों की

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वो जा रहीं थीं उखड़ती साँसों को संभालने अक्सर वो बैठ कर ही सोती थीं शांत मुद्रा और संतोष की झलक उनकी तकलीफ को छुपा देती थी पास बैठ मैंने अपने हाथों में उनके हाथ ले लिए वो हाथ जिन्होंने मुझे चलना सिखाया वो हाथ जो गिरने पर मुझे उठाते थे तरह तरह के व्यंजन बना खिलाते थे वो हाथ जिन्होंने मुझे टैटिंग करना अचार डालना और न जाने क्या क्या सिखाया वो हाथ जिन्होंने सहला सहला कर ही अक्सर मेरा बुखार उतार दिया अपने उन हाथों से कस के मेरा हाथ पकड़ अपनी उस असहनीय तकलीफ में भी एक मुस्कान फेंक वो बोलीं जाओ सो जाओ बेटा मैं ठीक हूँ आशीर्वाद देने वाले हाथ शायद हाथ छूटने का एहसास कर ढेरों आशीष देना चाहते थे डॉ अर्चना टंडन

Those Winding Roads

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Humid days of monsoon Bring back the days of our honeymoon Can never forget those winding roads Where stood hidden the colourful abodes The himalayan peaks and the pine trees By the cool mist, on our way to Mussoorie It was to escape the dripping perspiration That we had chosen the hilly destination We rode on the winding roads leisurely Savouring the beauty of the changing scenery Getting a feel of approaching heaven Gathering moments that in the future We would be happy to reckon ©Dr Archana Tandon

मोक्ष

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 सपने जब सच हुए तो लगा कि अब क्या  समापन रेखा के उस पार क्या होगा खालीपन का एहसास  एक  नए सपने की शुरुआत करा गया कुछ सपने ऐसे थे  जो बुनते बुनते ही खत्म हो  दर्द का एहसास करा गए उन्हें भुलाने के लिए  फिर एक बार  एक नए सपने ने जन्म लिया जब तक जिंदा हैं सपने देखना और  उन्हें पूरा करने में जुट जाना ही शायद  ज़िन्दगी की निशानी है सपनों का अंत तो मौत है या मोक्ष है अपने सपने में ऐसे डूब जाएँ तल्लीनता में उसके ऐसे खो जाएँ कि सपना मायने रक्खे  पूरा होना या अधूरा रहना नहीं फिर तो जीवन में भी मोक्ष और मौत में भी मोक्ष ©डॉ अर्चना टंडन

चोरी

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चोरी ही करनी है अगर तो ज्ञान की करना किताब से अखबार से या लेखक की तलवार से ई शिक्षा से या पुस्तकालय से वातावरण से या पारिवारिक समुदाय से औपचारिक तरीके से  या अनौपचारिक तरीके से विकसित करने के लिए अपनी बुद्धि, अपना कार्य कौशल क्योंकि ये चोरी जायज़ होगी प्रगतिशील और प्रेरणादायक होगी शुद्धता और नैतिकता से सराबोर कर प्रगतिपथ पर ले जानेवाली सकारात्मक सोच की जन्मदात्री होगी © डॉ अर्चना टंडन

लाल रंग की लालिमा

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लाल की लालिमा है लुभाती दौड़ते लहू का एहसास कराती  साम्यवादी रूस की लाल सेना के  रौद्र रूप को भी है कहीं दर्शाती  प्रेयसी के सुर्ख कपोल हों या हो प्रियतम का प्रभुत्व  दोनों को परिभाषित करता है लाल रंग की लालिमा का महत्व लाल रंग के ऐसे भी हैं बहुतेरे चहेते देखें जो आसमान की लालिमा साँझ सवेरे © डॉ अर्चना टंडन

प्रिय तुम मेरे

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प्रिय हो तुम प्रियवर मेरे तुम्हारे अपने ही स्वरूप में जैसे हो वैसे ही सदा साथ चलते चलो विस्तार लिए अपने विवेकी अभिरूप में कंधे से कंधा मिला कर चलने को  मेरा अधिकार मानने वाले मेरी कल्पनाओं को पंख लगा आज़ादी को मेरी विस्तार देने वाले मेरे हर तथ्य के तुम वास्तविक सत्य हो प्रियतम मेरे, तुम तुम हो इसलिए ही तो प्रिय हो © डॉ अर्चना टंडन

Doubt

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It is the doubt that makes me learn It seemingly makes my face so stern As I dive in to explore  All the available solutions And start studying them  To arrive at valuable conclusions Doubts provide me an aim  In my everyday life As I progress in person  To make myself strive Pushing off all the random interpretations Thrown my way Resultantly to my own elucidations  I start to gallantly sway ©Dr Archana Tandon

अलविदा

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आपको अलविदा कैसे कह दें हम आप तो सदा रहेंगे साथ हमारे परिवार के नियामक-छड़ बन  अपनी आने वाली पुश्तों का  साफगोई से मार्गदर्शन करते हुए क्योंकि आप एक संस्थान थे विशुद्ध विचारों के कोष थे जिनको अंतर्निहित करा आप हम सबका चित्त निमित्त कर सिखा गए पाठ सकारात्मकता का  कर्मठता का और सार्वभौमिकता का ©डॉ अर्चना टंडन

गुलिस्ताँ

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हर तरह के फूल खिले हैं साँसारिक इस गुलदस्ते में पूरक हैं वो कहीं एक दूसरे के बदस्तूर जारी रहे आज़ादी कहने सुनने की इस उपवन में क्योंकि यही तो है खूबसूरती इस गुलिस्ताँ की अपनी अपनी महत्ता लिए हर शख्स खिलता रहे और गुलज़ार होता रहे ये चमन सम्पूर्ण होता हुआ क्योंकि निचाई को अर्थ देती है ऊंचाई गरमाई को अर्थ देती है शीतलता अस्तित्व है इसलिए तो है अस्तित्व विहीन भी   असफलता के भीतर कहीं गर्त में छुपी हुई है सफलता             जब हम सब अधूरे ही हैं कहीं न कहीं तो क्यों न इस अस्तित्व को जीवंतता प्रदान करने वाले अस्तित्वों को पूरक मान  उन्हें ईश्वरीय देन समझ  उनका परित्याग न कर स्वीकार कर उल्लास मनाएँ डॉ अर्चना टंडन