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Showing posts from November, 2015

छंटती धुंध

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ये रौनकें पल दो पल की जिन पर न्योछावर करते हो बेहिसाब दौलत क्या ख़ुशी दे पाएंगी तुम्हें जीवनपर्यन्त क्यों नहीं सोच पाते इस भेड़ चाल से जुदा क्यों नहीं लूट पाते हो सादगी में मज़ा पुराने दिनों को याद करो दाल रोटी स्कूल और पकड़न पकड़ा ई बस यही थी रोज की दिनचर्या बारिश में लेते थे भीग  और उड़ाते थे , ज़िन्दगी का असली मज़ा चिड़िया के घोंसले में देख चिड़िया के बच्चे दो रूपए के बाजरे के दानों के लिए दिन भर करते थे , माँ से मिन्नतें फिर आज क्यों हम चादर से बाहर पैर फैलाना चाहते हैं  दिखावे के दुनिया को सर नवाना चाहते हैं  क्यों नहीं समझ पाते इस संसार के दुःख का असली कारण इस दौड़ से परे हट , क्यों नहीं कर पाते  इसका निवारण समझना होगा कि प्यार मोहब्बत का कोई सानी नहीं और जो समझ गए , तो समझो  तुमसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं  अर्चना टंडन

निर्वाण -निधि

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आग कब आग से बुझी है  नफरत कब नफरत से घटी है  गुरूर क्या कभी गुरूर से झुका है   एहसान क्या कभी एहसान से चुका है ? दुनिया के तिलिस्म को पहचान झूट की असली वजह जान सच की परत दर परत उघाड़  ज़िन्दगी की रूह को समझ क्या सच सच में है सच   सच को सच बनाने के लिए  कितने ही  झूटों का लिया गया है सहारा झूट को झूट साबित करने के लिए कई एक तथ्यों का घोंटा गया है गला  जब इन तथ्यों की रूह को जान जाएगा तब ही इस दुनिया की असलियत पहचान पाएगा दुनिया की असलियत जान खुद को समझ  तू भी मुस्कुराएगा  और दुनिया को भी मुस्कुराना सिखा जाएगा  अर्चना टंडन 

बरकते -एहसास

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बरकते -एहसास को ज़िंदा रखने में कामयाब कर ऐ खुदा दिला विश्वास कि ये एहसास   पाया नहीं कमाया जाता   है इरादों को सलामत रख बन्दे सच्चाई के रास्ते से इत्तेफ़ाक़ रख ख्वाहिशों को मंज़िल समझने की भूल में धोका और बेईमानी से वास्ता  क्यूँकर रख  डॉ अर्चना टंडन