छंटती धुंध






ये रौनकें पल दो पल की

जिन पर न्योछावर करते हो बेहिसाब दौलत

क्या ख़ुशी दे पाएंगी तुम्हें जीवनपर्यन्त



क्यों नहीं सोच पाते इस भेड़ चाल से जुदा


क्यों नहीं लूट पाते हो सादगी में मज़ा


पुराने दिनों को याद करो

दाल रोटी स्कूल

और पकड़न पकड़ा

बस यही थी रोज की दिनचर्या

बारिश में लेते थे भीग 

और उड़ाते थे , ज़िन्दगी का असली मज़ा

चिड़िया के घोंसले में देख चिड़िया के बच्चे

दो रूपए के बाजरे के दानों के लिए

दिन भर करते थे , माँ से मिन्नतें

फिर आज क्यों हम चादर से बाहर पैर फैलाना चाहते हैं 

दिखावे के दुनिया को सर नवाना चाहते हैं 

क्यों नहीं समझ पाते इस संसार के दुःख का असली कारण

इस दौड़ से परे हट , क्यों नहीं कर पाते  इसका निवारण

समझना होगा कि प्यार मोहब्बत का कोई सानी नहीं

और जो समझ गए , तो समझो  तुमसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं 


अर्चना टंडन




Comments

Popular posts from this blog

खुद्दारी और हक़

रुद्राभिषेक

आँचल की प्यास