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Showing posts from 2019

चाल अपनी-रफ्तार अपनी

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भेड़ हो या शेर हो तुम चाल अपनी चलो आत्मा की पुकार को दरकिनार मत करो हर जीव की  अपनी एक चाल है इस धरती पर आ कहानी अपनी पूरी करनी  उसे हर हाल है सियार कभी  शेर की खाल पहन शेर नहीं हुआ कछुआ भी अपनी चाल चल खरगोश को पछाड़ चला दूसरे की खाल में जीना न ही कभी कोई  सुखद परिणाम लाया न ही आत्मिक संतोष महसूस करा पाया और फिर जीत भी  क्या द्योतक रही जीत की सदा क्यूँकि हार कर भी  भीष्म ने शर-शैया पर इच्छा मृत्यु से प्राण त्याग मातृ-लोक था पाया डॉ अर्चना टंडन

श्रद्धांजलि सविता को

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Divine soul of one of my batchmates from 1978 MBBS Batch of NSCB Medical College left us at 2.10 AM on 18th Nov 2019 I write these few lines in her memory who was an eversmiling loving docile soul. Even after losing her mother at a tender age and bearing the brunt of losing quite a few of her family members to an accident she stood like a pillar to support her family. सविता, तुम जन्म मरण के चक्र से ऊपर उठ विस्तार पा गईं शायद तुम अपनी कोई दरख्वास्त  उसके द्वार सुनाने पहुंच गई तुम खुद एक योद्धा थीं जिसने विषम परिस्थियों में खुद एक लता होते हुए अपने आहत परिवार को एक वृक्ष का रूप दिया था क्या यही सबक सिखाने  अपनी उत्तराधिकारी को इस संसार स्वरूपी चक्रव्यूह में तुम छोड़ गईं? वो एक वीरांगना की पुत्री है तुम्हारा हर स्वरूप उसमें बसता है निश्चय ही तुम्हारे  दिए गए आत्मबल से वह एक ऐसा मुकाम बनाएगी तुम्हारे द्वारा असमय  रिक्त किये स्थान को अपनी स्त्री शक्ति और समझदारी से भर एक मिसाल कायम कर जाएगी डॉ अर्चना टंडन  

प्रतिच्छाया

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तुम मुझमें, मैं तुममें  हूँ कहीं बसती मैं हूँ अगर धरा  तो तुम हो मेरी धुरी तुम्हारे रूप तुम्हारे सौंदर्य में ढूंढती हूँ मैं यौवन अपना करती हुई बस एक कामना कि बुलंदियाँ तुम्हारे हौसलों तले ही रहें सदा और तुम छू सको रोमांच की हर पराकाष्ठा क्योंकि तुम मेरी परछाईं नहीं, अगुवाई हो इस दुखते जिस्म की अंगड़ाई हो हर ख्वाहिश की हक़ीक़त हो तुम मेरे हर स्वप्न की सच्चाई हो तुम डॉ अर्चना टंडन  

दुर्गाष्टमी के सही मायने

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आज तार तार है जीर्ण-क्षीर्ण हर लक्ष्मी हर सरस्वती और हर राधा का चीर तो सिर्फ इसलिए कि हर लक्ष्मी दुर्गा न हो सकी हर राधा प्रेमिका बन सुरक्षित न रह सकी हर सरस्वती विद्यालय न जा सकी हर वार उनका दुर्गा को शांत करने का था चरित्र के चीर हरण का था राजनीती कूटनीति सब क्षमताएं लगा दीं वो सौ थे दुर्गा अकेली पर फिर भी नवमी मनी वो दिन आया जब महिषासुर मारा गया देवों के देव भी जो न कर सके वो दुर्गा ने कर दिखाया अगर अन्याय होता देख भी सब मौन रहेंगे तो अन्याय को नष्ट कैसे करेंगे दुर्गाष्टमी पर दुर्गा को नमन कैसे कर सकेंगे? डॉ अर्चना टंडन

Spiritual Ecstasy

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Do we need to Deceive our emotions And our desires By not letting them out Do we need to Subdue our expressions For it is through their descent That our face shines By letting our feelings  Revel in our body And echo the songs of our soul We need to continue performing the exercise  Of humility, of love and of compassion  Swimming dauntlessly in our activity bowl For it's only by having control On the reins our senses And mastering these meditative asanas That we can traverse the expanse  And survive blithely In these perplexing worldly savannas In the process discovering Our own truth, our own solitude   And the truth of vagueness that surrounds Dancing in tandem With detached attachment to life's fantasies Aligning with our soul where ecstasy knows no bounds © Dr Archana Tandon

Just being

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Amongst the complexity that surrounds One needs to move And find a progressive scope Holding on to That one string of positivity That one thought of hope For one hasn't taken birth to drown Neither to be crowned It has always been To be a part of a story Not to earn a spectacular glory But to perform The dance of survival, Revival and continuance In one's own prairie It's by just being That one will be assured Of an unforeseen climax It's by just being That one shall understand And remove the parallax That exists between body and soul To reach the zenith In life and in death Which is the ultimate goal Dr Archana Tandon

Let her bloom

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Her dress, her drape Her colour, her shape Her built her gait Are not the things For anyone to comment Love and Care will vanish And the earth wilt away If she is not allowed  To blossom and bloom Twirl and croon For her to pour in her best To put your qualms to rest And make every home And earth a paradise Paying her respect For all that she is Is not such a big price Dr Archana Tandon

इंसान प्रदत्त दलदल

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The link to the video where I explain as to what goes in to penning this poem. https://youtu.be/C5cioO052Js आज़ादी स्वतंत्र विचार कायम रखने की आज़ादी एहसासों की स्वतंत्रता दर्शाने की आज़ादी पक्ष-विपक्ष के दुराव से दूर अपना मत रखने की खोती जा रही है इस वैश्विक औद्योगिकरण में महती को गई है आकांक्षाएं येन केन प्रकारेण पदस्थ हो सिरमौर होने की एक ऐसा दलदल है यहाँ, जहाँ बहता पानी होना अभिशाप है स्थिर भूमि होना अभिशाप है विशेष श्वसन यंत्र होना अभिशाप है नमकीन पानी में प्यास बुझाने के लिये निर्मल जल संचित करना अभिशाप है इसका ये मतलब नहीं कि आशा ही खो दें बल्कि विश्वास को अपने बल दें कि ईश्वरीय शक्ति सर्वोपरि है क्योंकि दलदल में भी कमल खिलते देखे गए हैं डॉ अर्चना टंडन

तेरा मेरा रिश्ता

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वो नहीं पूछते कि मेरा वजूद क्या है वो नहीं पूछते कि मैं किसलिए अपनी दूरबीन लिए उनका पीछा करती हूँ उन्हें नहीं मतलब मेरे मक़सद से मेरे रुतबे से मेरे स्वाभाविक या अस्वाभाविक तौर तरीकों से वो तो मगन हैं अपनी ही दुनिया में तल्लीन अपनी रोजी रोटी की जुगत लगाने में घोंसले को एक आरामदायी रूप देने में अपने नन्हे मुन्नों को इस दुनिया में ला तौर तरीके सिखाने में झाड़ियों से, दरख्तों के छेदों से पत्तों से और कई बार दूर आसमान से वो मुझे तकते हैं जैसे कह रहे हों आओ ,आ जाओ दूर से क्यूँ तकती हो हमें किसे दिखाओगी ये तस्वीरें उन्हें जो नहीं जानते उस तपिश को जो हम बेघर झेलते है उन्हें जो नहीं जानते कैसे तिनका तिनका बटोर अपनों को लाया जाता है इस दुनिया में उन्हें जो नहीं जानते रोज भूख को मिटाने के लिए न जाने कितने चक्कर लगाने पड़ते है उन्हें जो नहीं जानते की भूख, प्यास ही एकमात्र ज़रूरत है…. वो जो बांटनें में लगे हैं धरती को रेखाओं से, सीमाओं से दीवारों से, कुर्सी के अरमानों से उस धरती को जो एक देन है ईश्वर की हम सबके लिए

मैं ऐसी क्यों हूँ

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सतही लगाव को आत्मसात नही कर पाती इसे बचकानापन कह लीजिए मेरा किसी को अपना मानने का मतलब उसे अपना हिस्सा मानना है मेरे लिए Friends are acquaintances जैसे वाक्य समझ तो आते हैं किन्तु ग्राह्य नहीं मुझे हाँ मैं सांसारिक नहीं हूँ अपाच्य से किनारा कर पाच्य की खोज और इस प्रक्रिया का विश्लेषण मेरे अंतःकरण को कहीं शांत करता है सांसारिकता में खुद को खो भटकने से अच्छा है कि इस मनमोहक प्रकृति की गोद में विचर कर खुद को पा जाऊं डॉ अर्चना टंडन

सम्मोहन में छिपी है विरक्ति

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The link to where I recite the poem and try to elaborate on my interpretation of it. https://youtu.be/WL50gmZobV0 बहुत बड़ी हो तुम फैली, बहुरंगी विस्तार में अपने कोणों को समेटे हुए मैं भी तो एक प्रकार हूँ तुम्हारे आकार का समझना चाह के भी नही समझ सकती तुम्हें कभी सिर्फ अपलक निहारना तुम्हारी गति से अचम्भित होना तुम्हारे रंगों में डूब जाना तुम्हें क़ैद कर लेना और संजोना कहीं भीतर तक तर कर जाता है मुझे प्यास बुझती नहीं पर तृप्त हो जाती हूँ मैं कहीं सम्मोहित हो निकल पड़ती हूँ ढूंढने फिर एक नया कोण जो धीरे धीरे अपना आकार खो कभी फैल कर वृत्त में, कभी सिमट कर शून्य में और कभी एक लकीर का रूप धारण कर सुलझा जाता है मेरे अनेक प्रश्नों को और दे जाता है एक निर्देश सम्मोहन से गुजरते हुए विरक्ति का डॉ अर्चना टंडन