मैं ऐसी क्यों हूँ



सतही लगाव
को आत्मसात नही कर पाती
इसे बचकानापन कह लीजिए मेरा
किसी को अपना मानने का मतलब
उसे अपना हिस्सा मानना है मेरे लिए
Friends are acquaintances
जैसे वाक्य समझ तो आते हैं
किन्तु ग्राह्य नहीं मुझे
हाँ मैं सांसारिक नहीं हूँ

अपाच्य से किनारा कर
पाच्य की खोज
और इस प्रक्रिया का विश्लेषण
मेरे अंतःकरण को कहीं शांत करता है
सांसारिकता में खुद को खो
भटकने से अच्छा है कि
इस मनमोहक प्रकृति की गोद
में विचर कर खुद को पा जाऊं

डॉ अर्चना टंडन





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