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चाल अपनी-रफ्तार अपनी

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भेड़ हो या शेर हो तुम चाल अपनी चलो आत्मा की पुकार को दरकिनार मत करो हर जीव की  अपनी एक चाल है इस धरती पर आ कहानी अपनी पूरी करनी  उसे हर हाल है सियार कभी  शेर की खाल पहन शेर नहीं हुआ कछुआ भी अपनी चाल चल खरगोश को पछाड़ चला दूसरे की खाल में जीना न ही कभी कोई  सुखद परिणाम लाया न ही आत्मिक संतोष महसूस करा पाया और फिर जीत भी  क्या द्योतक रही जीत की सदा क्यूँकि हार कर भी  भीष्म ने शर-शैया पर इच्छा मृत्यु से प्राण त्याग मातृ-लोक था पाया डॉ अर्चना टंडन