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Showing posts from December, 2017

क्षितिज के करीब !!

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आज ज़िन्दगी को कुछ और करीब से देखा अस्तित्व को अपने कुछ और पहचाना ज़िन्दगी दूसरों से कहाँ, खुद से है खुद को आगोश में भर वीरानों में भी खुद को ही तलाशने से है दूसरे मजबूर और बंधे हैं अपने दायरों में तुम क्यों सीमित करो दायरा अपना जिस्म के जुड़ाव हैं और उससे जुड़े कष्ट है आत्मा तो आज़ाद है जिंदगी तो केवल नाटक है एक जहाँ दिखावा है, मुखौटे हैं, आवरण हैं, रण हैं, तरीके हैं बिना अपना पराया समझे सीखकर पार लगने के डॉ अर्चना टंडन 

आगमन वानप्रस्थ का

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आज वो कुछ जुदा से थे खफा तो नहीं पर हाँ  कुछ खामोश से थे शीर्षस्थ हो के भी  कुछ अपदस्त से थे जो हमेशा प्रतीत हुए मदमस्त से न जाने आज क्यों वो अपनी चिरपरिचित अदा को कह अलविदा दुनिया के शोर के बीच कुछ गुमसुम से थे शायद ये ज़मीर बेच मेल मिलाप का सलीका रंगरोगन में लिपटा किन्तु  कालिख लिए अंतर्मन को दर्शाता चेहरा अस्मत बेच उस पर चढ़ा रुआब शानोशौकत का आलम देख  उसकी असलितत पहचान वो अंदर से कहीं दहल गए थे सांसारिकता के इस भीषण रूप को आत्मसात न कर पाने के बोध से बिना किसी दुर्भाव से साँसारिक जुड़ाव से मुक्त हो आत्मबल के बोध से घिरे खुद को तृप्त पा रहे थे  डॉ अर्चना टंडन 

निचोड़

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आज की रचना (समर्पित हमारे मेडिकल कॉलेज के Batch Reunion को)   परवान चढ़ा सठियाना तो फिर बचपन में पहुँच गए हम यादों में खो कर फिर मुस्कुरा दिए हम ये मुस्कान बिन मकसद थी सबको मोहती ये अंतर्मन की थी सम्मोहन का दायरा विशाल था,  दिशाहीन नहीं अपितु एक फैलाव था  प्रेम का, उपासना का, शुक्राने का तुम्हारे मेरे एकाकी अस्तित्व का तुम्हारी मेरी आराधना का, अर्चना का अनुभूति का, तृप्ति का, मुक्ति का एहसास लिए जीवन का सार था डॉ अर्चना टंडन 

पुनर्जन्म

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शोला मत रक्खा करो सीने में दबा कर लावा बन जाएगा और फिर जो फूटेगा तो तबाही ही तबाही मचाएगा जलने दो शोलों को दहकने दो, राख बनने दो उन्हें राख होंगे तो पुनर्जन्म होगा और पुनर्जन्म होगा तो नया अवतार और खूबसूरत होगा !! डॉ अर्चना टंडन 

Truth

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Does truth exist Or is it that  The only truth is Existence of ambiguity ? What is true today  Becomes false tomorrow  And what was non existent yesterday Comes into existence today to perish tomorrow Is truth as temporary  As a fad Or is it as permanent as God ? God the goodness in you and me God the "our own truth" in you and me God the honesty in you and me God the survivor in you and me Dr Archana Tandon

गुनगुनाता अंतर्मन

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मेरी ख़ामोशी उनकी ख़ामोशी  से बातें करती है उनके अधरों पे आए अनकहे बोलों से दिल की तड़पन कुछ कम होती है मुस्कुराहट से इज़हार होता है  इक तराना स्वरुप लेता है  और फ़साना बन खामोशी को कहीं चीरता है  आलिंगन आगोश  की चाह को  नैनों की बौछार भिगोती है  अतृप्त मन अन्दर कहीं फिर आत्मा को टटोलता है  और  एकाकी अंतर्मन  एक बार फिर अपने में मस्त हो  श्रावणी झूला झूल गीत एक नया गुनगुनाता है  डॉ अर्चना टंडन 

वजूद

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ऐसे भी हैं कुछ वजूद कि वजूद है उनका तो कश्मकश है तीर से भरा उनका हर तरकश है मिटटी बनने से पहले बादशाहत की तमन्ना नहीं बस दुनिया से जालसाजी हटाने की अकुलाहट है माना कि मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है तंज़ भी बरसते हैं कि मक़सद दिशाहीन है पर रुकता नहीं है सैलाब उनका क्योंकि लावा उनके अंदर का भले ही आकारहीन हो धरती के अंदर होने वाली खलबली का द्योतक है वसुंधरा की काया पर मानवीय प्रहार द्वारा परिलक्षित हर असंतुलन का पूरक है डॉ अर्चना टंडन 

Evolution of Emotions

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It was in higher secondary When Mills and Boon did cast its spell Of an imaginary love, Into which we didn’t have the courage to delve Tall Dark and Handsome Were the criteria then Not many could fit The criteria well Those that did fit in the description Usually did not match our imaginary vision Studies being then the top priority We dived into it to get rid of this insanity We cleared the PMT in first attempt flashily And looked towards the future anxiously ​​First and second years Were lost in acclimatization The third year marked The re-emergence of hormonal emotions   Coyly the dreamy ones Expectantly gazed at the other gender As they bunked clinical postings And hither and thither they wandered Some found their heart throbs When confronted with proposals And some lost them Courtesy, orthodox societal circles Friendships were enjoyable Relationships out of question For studies remained a priority A