क्षितिज के करीब !!




आज ज़िन्दगी को कुछ और करीब से देखा
अस्तित्व को अपने कुछ और पहचाना
ज़िन्दगी दूसरों से कहाँ, खुद से है
खुद को आगोश में भर
वीरानों में भी
खुद को ही तलाशने से है
दूसरे मजबूर और बंधे हैं अपने दायरों में
तुम क्यों सीमित करो दायरा अपना
जिस्म के जुड़ाव हैं
और उससे जुड़े कष्ट है
आत्मा तो आज़ाद है
जिंदगी तो केवल नाटक है एक
जहाँ दिखावा है, मुखौटे हैं, आवरण हैं, रण हैं,
तरीके हैं बिना अपना पराया समझे
सीखकर पार लगने के

डॉ अर्चना टंडन 

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