निचोड़
आज की रचना
(समर्पित हमारे मेडिकल कॉलेज के Batch Reunion को)
(समर्पित हमारे मेडिकल कॉलेज के Batch Reunion को)
परवान चढ़ा सठियाना
तो फिर बचपन में पहुँच गए हम
यादों में खो कर फिर मुस्कुरा दिए हम
ये मुस्कान बिन मकसद थी
सबको मोहती ये अंतर्मन की थी
सम्मोहन का दायरा विशाल था,
दिशाहीन नहीं अपितु एक फैलाव था
प्रेम का, उपासना का, शुक्राने का
तुम्हारे मेरे एकाकी अस्तित्व का
तुम्हारी मेरी आराधना का, अर्चना का
अनुभूति का, तृप्ति का, मुक्ति का
एहसास लिए जीवन का सार था
डॉ अर्चना टंडन
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