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Showing posts from August, 2018

मुक़द्दर

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कहानी हूँ मैं कहानी हो तुम कहानी है वह ऐसी जिसका अंत है तुम चंद्रकांता मैं कबीर का दोहा और वह एक कविता तुम कई कड़ियों का कथानक मैं लघुकथा वह उपन्यास तुम मनोरंजन युक्त सम्पूर्ण कथानक मैं उपदेशगर्भित डॉक्यूमेंट्री वह सारयुक्त लघुफिल्म सब अपना रूप लिए अपना रूप संजोए अपने अपने दायरे में चिर परिचित प्रारूप में चमकते दमकते इस जीवन के अनजान किन्तु तयशुदा रास्ते पर इंगित हो रहे हैं शायद तुम मील का पत्थर बनो और मैं नींव का पत्थर और वो हीरा बन जाए पर इस करवट बदलते संसार में जो बात तयशुदा है, वह है तुम्हारा अंत, मेरा अन्त और उसका अंत फिर ये कैसा लगाव और कैसा अलगाव कैसा अनुराग और कैसा विराग कैसा राग और कैसा द्वेष? डॉ अर्चना टंडन

A poetic Deliverance

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Politically correct moves Religiously correct moves Socially correct moves Are not moves But are stepping stones That ultimately tame one For a never ending circle of a game Of no beginning and of no end Until the centrifugal force Overpowers the centripetal force To pull one out Before one succumbs to the blackout And guides one on to A tangential pathway of Self evaluation, and self building The ultimate pathway of liberation Salvation and emancipation Dr Archana Tandon

आँचल की प्यास

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जर्जर तार-तार होने का एहसास आज देखा एक छोटी सी तमन्ना को टूटते आज देखा एक माँ के आंचल की प्यास का दर्द आज देखा दुर्बलता के एहसास के मर्म को आज समझा ये कैसा प्यार, ये कैसा दर्द ये कैसा लगाव, ये कैसा घेराव था जो जर्जर शरीर को एक आखरी झलक के लिए उद्वेलित कर रहा था जर्जर शरीर उठा था एक आखरी झलक सजोने धड़ाम आवाज के साथ बिखर गईं उम्मीदें दर्द की चीखें भी न थाम सकीं जीवन के झंझावाती चक्रों को दर्द ,कराहट, चोट से सूजा शरीर और आंख सबको मात दे बहा ले गया एक खामोशी का लिबास जो समेटे था अपने अंदर एक अतृप्त सैलाब डॉ अर्चना टंडन

कुशल राजनीतिज्ञ की परिभाषा

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उसका वो चिर परिचित अंदाज़ चंद लफ़्ज़ों में कुछ को विपरीतार्थक प्रतीक होने वाला संवाद   अत्यंत सार्थक हुआ करता था उसके थमे से दीखने वाले विचार   हमेशा गतिशील ही रहे फैलाव लिए हुए किन्तु व्यवस्थित रहे राह वो अपनी चलता रहा आसरा सहारा देता हुआ बिना डगमगाए वो दूसरों   को भी स्थिर करता गया इस पाट पर पैर जमा, उस पाट को भी दायरे में रखना एक कुशल राजनीति का द्योतक मात्र था राजनीति जो प्रगतिशील थी राजनीति जो उदीयमान थी राजनीति जो जोड़वाली थी राजनीति जो चारित्रिक विश्लेषण से परे थी राजनीति जो विकासशील थी पाट को पाट से जोड़ती एक अनुबंध थी सूर्योदय से सूर्यास्त तक   आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन के लिए प्रतिबद्ध थी डॉ अर्चना टंडन