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Showing posts from May, 2020

My Papa

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How can I ever forget  Those walks on Ridge Road Where you would teach me Maths and physics  Walking uphill As the evening lights glowed How can I ever forget That after a rigorous office routine You would come home With comics and books To see our eyes gleam How can I ever forget Your determition to help us In pursuing the subjects of our interest You made it a point To be on our side As we matured And became independent To guide us all through You have always been our ideal Your patient yet intelligent approach Has inspired us all the way By imbibing your spiritual qualities We have succeeded in keeping The worst of our worries at bay. ©Dr Archana Tandon

परिचायक आँसू

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पथरीली और भर आईं आँखों से आज जो टपका था वो बरसों का सैलाब था जो बह निकला था घुटी हुई साँसों को जैसे श्वास देता आह को दर्द सलाखों की कैद से मुक्त करता वेदना में डूबी आत्मा को जैसे सहला एक रास्ता दिखाता अंदरूनी कोलाहल को शांत करता ये बहाव आज अदम्य साहस का परिचायक था जो उसे सदा सदा के लिए जुड़ाव के एक बंधन से आज़ाद कर स्वावलंबी बना गया था © डॉ अर्चना टंडन

प्रारब्ध या सामाजिक कोढ़

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वो कचरे के ढेर में आधारभूत ज़रूरतों को तलाशते बच्चे वो दो जून रोटी के लिए ज़िन्दगी फटेहाल गुज़ारते बच्चे क्या कभी शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़ पाएंगे या यूं ही गाली गलौज करते, खुले में शौच करते, पाश्विक जीवन जीते सद्गति को प्राप्त कर संदेश देते रह जाएंगे कि  ये प्रारब्ध का खेल ही तो  वो भोगने आए हैं इस धरती पर  © डॉ अर्चना टंडन

Sharing is Caring

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Keep analysing and sharing for letting it out, Keep the conversations going without any doubt At times to keep the melancholy away At times to just march past the day For sharing is caring It's never for  dashing past  Interactions of heart and mind  Are not  as destructive as the holocaust Teaching and preaching Should never be the intention Polishing and rejuvinating should form  the base  To move in the right direction Without encroaching the boundries Sharing is the best   mode of communication Resultant mutual caring  Helps in the earthly rejuvenation It is thus that the ideas  float all around   Colouring and broadening the horizon To stimulate people to dive and catch them And pick and choose to elaborate on Swimming in the ocean of life And searching for substance thus One discovers to build one's spiritual self By learning to conquer the floating impulse ©Dr Archana Tandon

समदृष्टि

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शरीर और अंतरात्मा जब जुदा थे छटपटाहट अपने चरम पर थी उफनती दरिया जैसे चट्टानों से टकरा  शोर पैदा कर बिखर रही थी जुदा होकर भी ये साथ थे विक्रम और वेताल की तरह अंतरात्मा निर्देशित करती थी शरीर उहापोह में रह सोचता था मन की जो इच्छा दर्शाई तो आत्मा से विच्छेद होगा और आत्मा की निर्देशित राह पर जो चला तो स्वेच्छा से विमुख हो जाऊंगा मन जो चलायमान था अनेक प्रश्न समेटे था जीवन के चक्रवातों से घिरा इंद्रियों द्वारा नियंत्रित था शरीर मन को काबू कर चलता तो था पर अक्सर अपनी पकड़ खो देता  और विक्रम की तरह आत्मा से जवाब तलबी की मनोदशा में विद्रोह कर उठता विक्रम की तरह प्रश्न पूछ लेता  अंतरात्मा भी वेताल की तरह अलग हो मौन धारण कर लेती  शरीर मन द्वारा ईजाद भूल भुलैया में एक बार फिर भटक कर  आत्मा की मनुहार लगाने जैसे चल देता  जैसे जैसे उसे अंतरात्मा की सत्यता का बोध हुआ इंद्रियों पर उसकी पकड़  मजबूत होती गई प्रश्न खत्म होते गए अब वो वेताल को लादे नहीं था बल्कि सहर्ष उसके साथ हो लिया था वो समझ गया था हर शरीर अपने वेताल के सा

मेरी मधुशाला

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इसे हरिवंशराय जी की महान  कृति का असर कहूँ  या  खुद पर इस जीवनस्वरूपी  मधुशाला का  असर  ये कह नहीं सकती पर आज कुछ पंक्तियाँ  मधुशाला का असर लिए हुए ज्ञात होता जो इस रसिका को क्या क्या उसको है भाता राह अनेक नित नई पकड़ वो रोज़ न पीती नई हाला प्रयोग अनेक उसे हैं भाते जीवन रुपी नृत्य-नाटिका प्यारी  जीवन की विस्तृत परिकल्पना को आकृति देती है ये नारी अनमोल पलों को चित्रित कर सहेज आत्मिक सुख पाती ये बाला प्यास रसिका की निरंतर बढ़ाती जीवनस्वरूपी ये मधुशाला ©डॉ अर्चना टंडन

कोविड काल और श्रमिक

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Photo Credit - Republic World बुनियादों की हर ईंट तुम्हारी मैने लगाई है तुम्हारे घरौंदों की दीवार भी मैने ही सजाई है खिड़कियों को ग्रिलों से मजबूत कर दरवाजे गढ़  तुम्हें दैवीय आपदाओं और आक्रांताओं से  सुरक्षा दिलाई है घरों में ही नहीं अपितु रोजमर्रा के इस्तेमाल की हर चीज़ की तह में तुम मुझे पाओगे आँखें घुमा कर देखोगे  तो मेहनत को मेरी तुम परख पाओगे और मेरी दो रोटी कमाने की मशक्कत को समझ पाओगे हम मेहनत कश अपने अपने हुनर में माहिर ठेकेदारों के दिये हुए चंद रुपयों पर पलते हैं दो जून रोटी कमाने की खातिर  हम अक्सर मीलों चलते हैं काश कि तुम्हारे शुक्रानों की फेहरिस्त में ठेकेदारों के साथ हम भी मौजूद होते वैश्विक उत्थान की परियोजनाओं में  और श्रमिक उत्थान की परिकल्पनाओं में शुमार होते तो आज, जिस आदर से इस महामारी काल में रसूकदार विमान से अपने देश लाए गए  हम भी सामान ढो, परिवार के साथ पलायन कर आज मीलों पैदल चलने को मजबूर न हुए होते © डॉ अर्चना टंडन Our celebration is "Roti, Kapda Aur Parivaar"