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Showing posts from 2014

मेरे अपने

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मेरे अपने  बच्चे आए  आकर लिपट गए  नानी ,चाची माँ मम्मी  शब्द चारों तरफ बिखेर कर बेइंतेहा सुकून कहीं  अंतर्मन को पंहुचा गए   पुराने लम्हे लौटे थे  खिलौने ,किताबें कपडे बिखरे थे  जय ने बिस्तर पर से  जो कुछ समेटना चाहा  तो आवाज़ आई मम्मी  " इनका तो बहुत मुश्किल है " बहुत जाना पहचाना सा लगा  बिट्टू द्वारा इजाद किया हुआ  सबकी जुबान पर चढ़ा हुआ   जय ने प्यार से  बच्चे के सर पर हाथ जो फेरा  तो बच्चा जोर से चिल्लाया  मम्मी संभालिये इन्हें  देखिये तंग कर रहे हैं  मम्मी फ़ौरन बच्चे की तरफदारी करने लगीं  और पापा मुस्कुराते हुए  चल दिए  रात स्काइप से सब कनेक्ट हुए  टट्टी -पॉटी शब्द सुनाई  दिए  जैसे बिना इन शब्दों  के कुछ अधूरापन सा था और इन्हें सुन सबकी हंसी में कहीं एक अपनापन सा था बिट्टू मोटी,टिड्डी छोटी  कुक्की थे पार्ले ,  मिन्नो थीं मिनी ताऊ चचा थे बाबूजी के तीन बन्दर  तो मोनू थे सब बच्चों के चेंज ओवर ताई  थीं सबको बहुत ही  प्यारी  और म

Dare to be who you are

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Dare to be who you are  People will cheat you , People will ridicule you , People will malign you , Don't bother ,dare to be who you are !!  Say what you ought to say , Do what you ought to do , Protest when you ought to protest , Don't bother ,dare to be who you are !!  Stand up for the oppressed , Fight for the fraudulently disgraced , Corner the deceitful double - faced  Don't bother ,dare to be who you are !!  Pray for justice to prevail , Know that peace it entails , Fear not the ghastly tales , Don't bother , dare to be who you are !!  Attempt to follow the unexplored trails , As you go by tighten your sails , Never  afraid of the whining gales , Go as you should , Daring to be who you are !!                                          -- ARCHANA TANDON

ये कैसा इन्साफ ?

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  ये कैसा इन्साफ  ? ये कैसा इन्साफ है तेरा हे ईश्वर  मासूमों पर ये ज़ुल्म क्यूँ ? ये देहशत्गर्द भी तो हैं  तेरे ही बन्दे  तो उनपर तेरी पकड़ ढीली क्यूँ ? ये तो फूल थे किसी बगिया के  इन्हें तो अभी पूरी तरह खिलना था  तू बचा न पाया इन्हें उन दैत्यों के चंगुल से  और वो दैत्य उजाड़ गए घर सैकड़ों के  बता इन मासूमों पर हुआ ज़ुल्म  कैसे मैं बर्दाश्त करूं ? तू है , यक़ीनन है  इस पर  कैसे मैं विश्वास करूँ ? तू है तो इन रोती बिलखती माओं को यकीन दिला  उन देह्शत्गर्दों को दे उनके किये की सजा  अगर है कहीं तू तो आ सामने आ  पाप पुण्य और इस जीवन चक्र का गणित मुझे समझा नहीं रह गया यकीन मुझे तेरे होने पर अब  कुछ चमत्कार दिखा लौटेगा मेरा  विश्वास तेरे होने पर तब  अर्चना टंडन 

घुटन सी महसूस होती है मुझे

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चाह कर भी जब कभी सच नहीं कह पाती सच के लिए नहीं खड़ी हो पाती आवाज़ उठाती हूँ पर घोंट दी जाती है कभी समाज के ठेकेदारों द्वारा कभी अपने ही किसी करीबी द्वारा इस डर के की ये ज्वाला उन्हें कहीं जला कर राख न कर दे उनकी बरसों कि कमाई इज्ज़त को कहीं ख़ाक में न मिला दे समझौते वाले किन्तु केवल ऊपरी तौर से शांत से वातावरण में कोहराम कहीं न मचवा  दे   तो चाह कर भी अपने को मैं रोक नहीं पाती   और कह देती हूँ एक सच जिसे कहने में सबकी भलाई मैं समझती हूँ  और जब कहती हूँ तो ये नहीं देखती कि सामनेवाला शख्स दोस्त है या फिर हो रिश्तेदार कह देती हूँ बेहिचक फिर चाहे  हो वो कोई अपना ही पालनहार गलत है अगर वो शख्स तो उसे बता उसका ही भला चाहती हूँ नहीं कह पाती जो गलत को गलत तो ग्लानी में जल जाती हूँ किसी को नीचा दिखा नहीं कमानी चाही कभी भी प्रशंसा  पर अपने या किसी और के अधिकार दिलाने की सदा ही रही मेरी मंशा अगर अपना समझते हैं  तो आत्म-मंथन कर के देखें  कहा है जो मैंने उसपर गौर करके देखें  अगर फिर मेरे कथन में कहीं भी सत्यता  नज़र आए और  एक अपनत्व का बोध तुम

FATE OF WOMEN COURTESY PROPOSED MTP BILL

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Here is a poem to describe the plight of a female who landed up with perforation and intestines pulled out of it by some unqualified person . I lay there bleeding  With my relatives pleading  Medical help was needed  As the old MTP bill was super seeded  By the new drafted MTP Act  Which was the Government's pact  The doctors said the nurse had failed to assess  The duration of pregnancy and had made a mess  As I had missed just one period  And the nurse was not experienced  She missed that I was three months pregnant  So she left me to bleed with all the remnants  My intestines too had been pulled out  Which the nurse knew nothing about  The doctors shifted me to the OT  To proceed with their duty  They did everything to save my life  And I was relieved of my strife The doctor announced that I had lost a few inches of my intestine  In spite of that to me he  looked so pristine  I pray to God that such a bill is withd

Good Leaders don't lead the public but are those who are led by the public !!!

नेता कैसा हो ? जो ये न समझे कि वो सर्वज्ञाता  है बल्कि ये समझे कि सभी को बहुत कुछ आता है ये मेरा नहीं टॉप बिज़नस स्कूलों और न्यूरोलॉजिकल रिसर्च संस्थानोंओं का निष्कर्ष  है कि एक अच्छा नेता अपने में समझ पैदा करता है दूसरों की काबिलियत पहचानने की दूसरों की काबिलियत जान  कर पहचान कर इस्तेमाल कर वो अपना दायरा बढाता है लीडर अभिमान छोड़ ; अवसर ,समाधान और खतरों और अपेक्षाओ के परे जा  सबमे एक विश्वास पैदा  करता है वो एक पारदर्शी माहौल का निर्माण करता है जहाँ सब एक दूसरे पर विश्वास कर सकते हैं यही पारदर्शिता  प्रतिद्वान्तिता को पीछे छोड़ एक  लीडर की ताकत दर्शाती है  यह समझ कि उसकी शक्ति  सब की ताकत में ही  है न की उसकी शक्ति ही सब की ताकत  की वजह है एक अछे नेता की पहचान कराती है और उसके लिए एक मजबूत आधार बनाती है ऐसा नेता किसी भी  अवार्ड फंक्शन में  एक इंसान को नहीं टीम एफर्ट को अवार्ड  देता है .. वो न तो कभी सहारा देता है न बचाव करता है पर सब में आत्म  विश्वास पैदा कर ; समस्याओ का समाधान कराता  है ऐसा नेता कभी ये नहीं दर्शाता कि उसने कुछ किया  बल्कि हर उपलब्धि की श्रेय वो हर एक मेम्ब

चंद शेर

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तूने जो की बेवफाई तो मेरे खुदा ने ही की खुदाई वो हमेशा साथ रहा मेरे और महसूस न होने दी  मुझे फिर कभी तन्हाई  ********** ज़िन्दगी बीतती गई तजुर्बे भी होते गए दर्द भी मिले दुआ भी मिली हर नए दर्द ने पुराना दर्द भुलाया जब किसी की दुआ ने अपना रंग दिखलाया ********** आज हंसने का मन नहीं था न ही गाने गुनगुनाने का था पर माँ ने जो पुछा कि सब ठीक ठाक तो है ? तो ठहाका लगा के कहना पड़ा नहीं है ज़िन्दगी में कुछ भी स्लेटी तुम्हे कैसे बताऊँ कितने मजे में है तुम्हारी बेटी ********** ये दुनिया है बड़ी ही गज़ब    यहाँ नहीं है ज़रुरत   माचिस की दोस्तों  यहाँ तो माचिस नहीं आदमी ही काफी है  आदमी को जलाने के लिए  ********** मंदिर गई थी ईश्वर पूजने फूलों की चादर देख लगा एक बेजान पत्थर को जिलाने के लिए कितने जीवित फूलों का क़त्ल हुआ ********** एक घंटा बजाने वाली घडी खरीदी शौक से हमारे वो दीवार पर टंगी हर घंटे वो घंटा बजाती थी दिन में कभी न एहसास वो हमें वक़्त का कराती थी पर रात को जब हर घंटे पर वो घंटा बजाती  थी तो वक़्त का पीछ

उसकी लेखनी की महिमा

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This poem is dedicated to a colleague of mine who is a very sensitive human being with an awesome power to write and express Dr Jasmine Mehta . उसकी कलम जो उठीं तो मानो  नदियाँ  उफन पड़ी और उसके मुंह से गीत जो फूटे तो श्रीकृष्ण की बंसी भी  थम गई पर जब  कलम थमी तो धुआंधार  झरते झरने सूख गए  और उसके होंठ जो कंपकंपा के रह गए तो युगों युगों के गीत थम गए  अर्चना टंडन 

एक ज़रुरत -- एक अरमान

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हर यात्रा का गंतव्य हो हर कहानी का अंत हो  हर नदी सागर  में मिले   हर ख्वाहिश पूरी हो सके   ज़रूरी तो नहीं  पर हर बेसहारा को सहारा मिले    हर भूखे पेट को रोटी मिले  हर उफनते तूफ़ान को विश्राम मिले  हर बेघर को आसरा मिले   ये कामना है मेरी  हर कोशिश कामयाब हो    हर रास्ता आसान हो  हर रथ के सारथी श्रीकृष्ण हों  और हर उम्मीद को मंजिल मिले ज़रूरी तो नहीं  पर हर बेचैन मन को चैन मिले  सब दुखों को सुख का आवरण मिले   बेचैन करने वाले कष्टों का निवारण हो  और अंदरूनी और बाहरी युद्ध से मुक्ति मिले  ये दुआ है मेरी  हर तारीफ का मकसद हो    हर जीत ख़ुशी में तब्दील हो  दान कर हर बार सुकून ही मिले   की गई हर प्रार्थना स्वीकार ही हो ज़रूरी तो नहीं  पर हर स्त्री की आबरू बची रहे  हर बिलखते बालक को माँ का प्यार मिले  हर समाज को दहेजप्रथा से मुक्ति मिले  हर बालमजदूर को मुफ्त स्कूली शिक्षा मिले  ये इच्छा है मेरी  तो चलें जो ज़रूरी है  उसके लिए कदम उठायें  कुछ संकल्प लें  कुछ बदलाव लायें  चलें कभी किसी ज़रुरतमंद के बच्चे को पढाएं  कामगारों में अपने कभी किसी अपंग को अपनाएं  कभी किसी अनाथाश्रम से बच्चे को अपना