चंद शेर




तूने जो की बेवफाई

तो मेरे खुदा ने ही की खुदाई


वो हमेशा साथ रहा मेरे


और महसूस न होने दी


 मुझे फिर कभी तन्हाई 


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ज़िन्दगी बीतती गई


तजुर्बे भी होते गए


दर्द भी मिले


दुआ भी मिली


हर नए दर्द ने पुराना दर्द भुलाया


जब किसी की दुआ ने अपना रंग दिखलाया



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आज हंसने का मन नहीं था


न ही गाने गुनगुनाने का था


पर माँ ने जो पुछा कि सब ठीक ठाक तो है ?


तो ठहाका लगा के कहना पड़ा


नहीं है ज़िन्दगी में कुछ भी स्लेटी


तुम्हे कैसे बताऊँ कितने मजे में है तुम्हारी बेटी



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ये दुनिया है बड़ी ही गज़ब 


  यहाँ नहीं है ज़रुरत  माचिस की दोस्तों 


यहाँ तो माचिस नहीं आदमी ही काफी है 


आदमी को जलाने के लिए 




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मंदिर गई थी ईश्वर पूजने


फूलों की चादर देख लगा


एक बेजान पत्थर को जिलाने के लिए


कितने जीवित फूलों का क़त्ल हुआ




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एक घंटा बजाने वाली घडी खरीदी


शौक से हमारे वो दीवार पर टंगी


हर घंटे वो घंटा बजाती थी


दिन में कभी न एहसास वो हमें वक़्त का कराती थी


पर रात को जब हर घंटे पर वो घंटा बजाती  थी


तो वक़्त का पीछे पड़ना किसे कहते हैं ये बखूबी हमें समझाती थी




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साथ चले दूर तक चले रिश्ते निभाते निभाते


पर अपने आप को खो दिया हमने इस राह पर जाते जाते




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 अहम् और वहम दो हैं साथी जिसके


उसके पास से हर रिश्ते नाते खिसके




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इंसान इंसान को नहीं कर सकता है  बेनकाब


क्यूंकि यहाँ सब ओढ़े हुए हैं  नकाब


जब ईश्वर के पास ही है हर नकाब का हिसाब


तो फिर किस बात की चिता है जनाब




अर्चना





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