घुटन सी महसूस होती है मुझे





चाह कर भी जब कभी सच नहीं कह पाती
सच के लिए नहीं खड़ी हो पाती
आवाज़ उठाती हूँ पर घोंट दी जाती है
कभी समाज के ठेकेदारों द्वारा
कभी अपने ही किसी करीबी द्वारा
इस डर के की ये ज्वाला उन्हें कहीं जला कर राख न कर दे
उनकी बरसों कि कमाई इज्ज़त को कहीं ख़ाक में न मिला दे
समझौते वाले किन्तु केवल ऊपरी तौर से शांत से वातावरण में कोहराम कहीं न मचवा  दे 
तो चाह कर भी अपने को मैं रोक नहीं पाती 
और कह देती हूँ एक सच जिसे कहने में सबकी भलाई मैं समझती हूँ 
और जब कहती हूँ तो ये नहीं देखती कि
सामनेवाला शख्स दोस्त है या फिर हो रिश्तेदार
कह देती हूँ बेहिचक फिर चाहे  हो वो कोई अपना ही पालनहार
गलत है अगर वो शख्स तो उसे बता उसका ही भला चाहती हूँ
नहीं कह पाती जो गलत को गलत तो ग्लानी में जल जाती हूँ
किसी को नीचा दिखा नहीं कमानी चाही कभी भी प्रशंसा 
पर अपने या किसी और के अधिकार दिलाने की सदा ही रही मेरी मंशा
अगर अपना समझते हैं  तो आत्म-मंथन कर के देखें 
कहा है जो मैंने उसपर गौर करके देखें 
अगर फिर मेरे कथन में कहीं भी सत्यता  नज़र आए
और  एक अपनत्व का बोध तुम्हे कहीं  कराए
तो पलट के कह देना ऐ  दोस्त  तुमने ये अच्छा किया
मुझे अपना समझ एक रास्ता  जो  सुझा  दिया
तुम्हारी वाहवाही करने वाले तुम्हे तुम्हारी गलती कभी न बताएँगे
वो तो तुम्हारी गलतियाँ करने में अपना भला देख सदा तालियाँ ही बजाएंगे
ऐ दोस्त ऐसी करनी पर मजबूर मत करो मुझे 
कि तुम्हारी गलती पर चुप रह मैं नुक्सान पहुँचाऊँ तुम्हे 
शांत चित्त हो कर जो विचरोगे  तो पाओगे 
कि मैंने जो किया वो तुम्हारे भले के लिए ही किया
तुम्हे जमीनी सच्चाई दिखाने के लिए ही किया
ये तख्तो ताज तो बस  दो दिन के ही होते हैं
ये शोहरत भी तो सिर्फ आनी और जानी ही  होती है
अगर सच का दामन थामोगे  तो कभी न पछताओगे 
और अपने मकसद में कामयाब भी  हमेशा खुद को पाओगे 
आगे बहुत आगे तुम्हे अभी है जाना
मेरी शुभकामनाओं को भी सदा अपने ही साथ पाना
पर याद रखना तुम्हें
आगे भी अपना समझ हर गलती पर मैं टोकूंगी
और हर उपलब्धि पर पीठ भी तुम्हारी ठोकुंगी
मानते  हो अगर तुम मुझे अपना शुभचिंतक
तो रोकना न मुझे सच्चाई मैं बयाँ कर दूं जब तक


----- अर्चना टंडन





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