बेशकीमती लिबास

                                   

     बेशकीमती  लिबास 


जी करता है तुझे अपना कहना छोड़ दूं

फिर न कोई आशा न निराशा न आरज़ू 

ऐसा क्यूँ होता है कि आज भी 

मैं इन अपेक्षाओं से उभर नहीं पाती

आज़ाद होना चाह कर भी क्यूँ आज़ाद नहीं हो पाती

क्यूँ ये कशिश आज भी है  मन में

कि कहीं हम आज भी अधूरे हैं

क्यूँ अतृप्त सा ये एहसास है

क्यूँ ये आगोश की  तड़प और चाह  है

क्यूँ ये खुद को न समझा पाने  की  कसक

तेरे अपना होने पर भी क्यूँ है ये हिचक

 क्यूँ मैं जुदा नहीं कर पाती वो अपनी तन  मन

 से भी ऊपर उठ कर  एक चाह की अपेक्षा

जीवन में सब कुछ पा कर भी एक अधूरेपन का एहसास क्यूँ है ?

सदा मुस्कुराते रहने पर भी कहीं भीतर ये तड़प क्यूँ है ?

लोग कहते हैं आत्मा लगाव नहीं रखती

ये तो शरीर   के लगाव हैं

जब आये हैं इस जहाँ में और शरीर  एक स्वरुप है

तो शरीर  से जुडी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं

शरीर  से जुड़े कुछ रिश्ते भी हैं

कुछ दोस्त कुछ दुश्मन भी हैं

कुछ अपने कुछ पराये भी हैं

आत्मा के न दोस्त हैं न दुश्मन

न अपने न पराये बस ईश्वर से मिलन की एक आस

तो मैं कहती हूँ आत्मा बनना आसान  हैं

शरीर बनना कठिन

कर्मनिष्ठ कर्मयोगी  बनना कठिन है

योगी बनना आसान

तो तड़प मिटाने  के दो ही साधन हैं

शरीर  जो पाया है रिश्ते जो पाए हैं उन्हें निभाओ

अलगाव व आगोश दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं

इस शारीर के लिए बनाए गए  हिस्साए आरज़ू हैं

जब ये बेशकीमती लिबास पाया है

और इससे जुड़े  अँधेरे और रोशनी का हमसाया  है

तो क्यूँ फिर ये अधूरेपन का एहसास

क्यूँ ये तड़प क्यूँ ये बेसुकूनी का बाहुपाश

इस शारीर के धर्म निभाओ

जो भी मिले हाथ जोड़ शुक्रिया मनाओ

आत्मा का ये सफ़र जो  तृप्त  हो कर गुजारोगे 

तो दोबारा  तृप्त  होने वापस इस धरती पर न आओगे

उसमे विलीन होने के लिए ही तो है ये सफ़र

जो समझ गए तो कठिन नहीं फिर डगर

--अर्चना 






Comments

Unknown said…
amazing..... love it....
Unknown said…
maam....its a very good read...keep it up...:)
Thanx Dr Amita ! U R always so appreciative and boost my morale !!
Mujhe bhi samajh aa gaya mummy! kya likha hai!
Anonymous said…
Nice
Anonymous said…
Beautifully said ��

Popular posts from this blog

खुद्दारी और हक़

रुद्राभिषेक

आँचल की प्यास