आभासी दुनिया और प्रेम



प्रेम वर्णित नहीं हो सकता

प्रेम अचम्भित कर सकता है

इस डिजिटल दुनिया में

ये विस्तृत हो कर भी केंद्रित हो सकता है


प्रेम की एक नई परिभाषा

जन्म ले रही है

जिसने उम्र, लिंङ्ग, धर्म और जात

के मायने ही बदल दिए हैं

दिमागी तरंगों के मेल ने

गाँवों, शहरों, देशों की सीमाओं को पार कर 

अजब से रिश्ते गढ़ दिए हैं


अंतर्मुखी लाभान्वित हैं इस 

नवजात संसार में

अपने में सीमित रह

वो उड़ान भर रहे हैं

कुछ दूर बैठे अपने जैसों में

खुद को देख पा रहे हैं


इस विशाल सभागार में

ज्ञान, मेल मिलाप,

सतरंगी ,रुपहली विधाओं

की बरसात, 

खुशी, क्रोध, भय

सभी कुछ तो विद्यमान है


संसार जब भौतिक भौगोलिक

के साथ साथ आभासी हो चला है

तो प्रेम भी अपनी 

व्याख्या का दायरा बढ़ा,

परिभाषा बदल एक नए रूप में

अवतरित हो रहा है।


डॉ अर्चना टंडन

( Published in the anthology- आभासी दुनिया के अनोखे रिश्ते )

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