गुलिस्ताँ


हर तरह के फूल खिले हैं

साँसारिक इस गुलदस्ते में

पूरक हैं वो

कहीं एक दूसरे के

बदस्तूर जारी रहे आज़ादी

कहने सुनने की

इस उपवन में

क्योंकि यही तो है खूबसूरती इस गुलिस्ताँ की


अपनी अपनी महत्ता लिए

हर शख्स खिलता रहे

और गुलज़ार होता रहे

ये चमन

सम्पूर्ण होता हुआ


क्योंकि निचाई को अर्थ देती है ऊंचाई

गरमाई को अर्थ देती है शीतलता

अस्तित्व है इसलिए तो है अस्तित्व विहीन भी  

असफलता के भीतर

कहीं गर्त में

छुपी हुई है सफलता

           

जब हम सब अधूरे ही हैं

कहीं न कहीं

तो क्यों न इस अस्तित्व को

जीवंतता प्रदान करने वाले

अस्तित्वों को

पूरक मान 

उन्हें ईश्वरीय देन समझ 

उनका परित्याग न कर

स्वीकार कर

उल्लास मनाएँ


डॉ अर्चना टंडन





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