खामोशी का शोर भरा दर्द



शोर में भी है एक ख़ामोशी
समझने की कोशिश करना कभी

माँ की बडबडाहट के पीछे की ख़ामोशी
विधवा की पुकार की तड़प की ख़ामोशी
बलात्कारी द्वारा प्रताडित आत्मा के क्रंदन की ख़ामोशी
वर्षों लाला के कर्ज के बोझ तले दबे गरीब के विद्रोह के स्वर की ख़ामोशी

यहाँ उस ख़ामोशी की बात नहीं हो रही है
जो शतरंज के खिलाडी की होती है
उठा पटक के दावों वाली
मेरा- तेरा, इसका-उसका
के गुणा भाग वाली
न ही उलझनों को उलझाती
सुलझे हुए को उलझाने के रास्ते तलाशती ख़ामोशी की  

बल्कि उस ख़ामोशी की बात हो रही है
जो हर भूकंप ,हर ज़लज़ले
हर दुर्घटना, हर युद्ध के बाद देखी जा सकती है  
जैसी भोपाल गैस त्रासदी के बाद
के शोर में थी ...............

कोशिश करो कि पहचान सको इस शोर
में छुपी खामोशियों को
और इस खामोशी के पीछे छुपे दर्द को

शांत प्रवृत्ति वाली दरिया जब जब रास्ते के पत्थरों से टकराएगी
शोर, सन्नाटे को चीरता हुआ एक सन्देश देगा
संदेश एक असहनीय तड़पाने वाले दर्द का

©डॉ अर्चना टंडन


Comments

Popular posts from this blog

खुद्दारी और हक़

रुद्राभिषेक

आँचल की प्यास