कलयुगी श्रीकृष्ण



वो उन्हें अपना ही समझते थे
कि ज़ख्म जिन्होंने गहरे दिए
गैरों का इस्तेमाल कर
विषैले तीर दाग दिए

कहते हैं सल्तनत का नशा 
सब रिश्ते भुला देता है
हर शख्स को एक
मोहरे में तब्दील करवा देता है

उनकी ये बदकिस्मती रही
कि वार उनपर हर-बार पीठ पर ही हुए
और समझते हुए भी 
वारों को वो आत्मसात करते चले गए

वार पर वार ने न तो उन्हें विचलित ही किया
न ही संतुलन खोने दिया
गोया रुख उन्होंने सुदामा बन श्रीकृष्ण द्वार का हर बार ही किया

जान कर भी अनजान रहे वो
कलयुगी श्रीकृष्ण और सतयुगी श्रीकृष्ण का अंतर
हर वार उनका भुला 
वो सहर्ष चलते गए समानांतर

सतयुगी श्रीकृष्ण ने सल्तनत को बचाने की खातिर 
साथ सात्विक मूल्यों का दिया 
अर्जुन का युद्ध में मार्गदर्शन
ईमान धर्म का साथ देने के लिए किया 

कलयुगी श्रीकृष्ण तो
हमेशा कलयुगी ही रहा
उसने हर शख्स का इस्तेमाल 
सल्तनत में अपनी पैठ 
बनाए रखने के लिए ही किया

डॉ अर्चना टंडन



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