क्या सही क्या गलत सोच का फेर है




कैसा अजब है ये दुनिया का आलम
हर इंसान क्यूँ है दूसरे को टोपी पहनाने में मगन 
सबको है खुद से वास्ता कम
दूसरों  की चिंता अधिकतम
पर ये सोच क्या हमें कहीं ले जाएगी

या फिर सीधे धरातल या उससे भी नीचे कहीं पहुँचाएगी 
क्यों हम अपने आप को नहीं है देख पाते
दूसरों को बुरा कह क्यों हैं हम सुकून पाते
क्या किसी का भी सच कभी कोई जान पाया

क्या आदमी खुद को ही कभी पहचान पाया
दूसरे की जिम्मेदारी उसकी खुद की है
ये जान कर भी हम क्यों दूसरो में रमे हैं
क्यूँ हम दूसरों को कम 
खुद को ज्यादा आंकने में लगे हैं 

जो जैसा बोएगा वैसा ही पाएगा
उस के कर्मों का फल दूसरा कभी न बाँट पाएगा
ये अगर है सच तो फिर अपने आप को धवल दिखाने के लिए
लोग क्यों है दूसरों  इस्तेमाल करते 
खुद को बचा दूसरों को फंसा क्यों है वो सुकून पाते 
हमें ये तय  करना होगा कि न कोई सही है न कोई गलत

अपने आप में सब सही हैं संभालने में अपनी सल्तनत
समय सबको सही और गलत बना देता है
मोहरों की तरह इस्तेमाल करवा देता है
आज जो सही है कल वो गलत होगा
 और आज जो गलत है  कल वो सही होगा
ये एक ऐसा मकड़जाल है जिससे हमें निकलना होगा
दूसरों से नहीं खुद से वास्ता रखना होगा

हम जो खुद को तलाशेंगे तो खुदको पाएंगे
दूसरों को तलाशेंगे तो भटक जाएंगे
नदी की तरह मदमस्त बहने में ही आनंद  है
अपने आप में रमने में तो परमानन्द  है
पार तो है  सबको लगना
रास्ता अपना है सबको खुद ही तय करना
तो फिर क्यों दें हम दूसरों की आँखों को  नमी
और ऐसा कर क्यों  करें पूरी  अपनी कमी
तो क्यों न हम अपना अपना सच  जियें
दूसरों  का सच हम क्यों जानने की कोशिश करें
यही सुकून का रास्ता है जो व्यथित होने  से बचाता  है
कोई सही नहीं और कोई गलत नहीं ये हमें  समझाता  है
-- अर्चना 


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