चंद शेर उस के नाम




कहीं होता है कत्ले आम सरे शाम

और कहीं जान पर खेल जान बचाता है इंसान 

कहीं तोड़ दिए जाते हैं जन्मों के नाते

तो कहीं बन जाते हैं बिन बंधन जन्मों के रिश्ते







है अजीब ये इत्तेफाक भी

की हमारे हो के भी

वो हमारे न हुए

और पराये हो के भी

 वो पराये न हुए


नहीं था जो विश्वास खुद पर

तो हर दांव उल्टा पड़ता गया

और विश्वास जो मैं करना सीखता गया

तो फिर जीत पे जीत हासिल करता गया






तुम संग नैन जो लड़े

तो झुकाने में असमर्थ रह गए हम

आग जो लगी फिर तन बदन में

 तो फिर बुझाने में सक्षम न रह गए हम



कोरा था मन मेरा तुम्हारे बिन

तुमने आके लिखवाई इबारत एक दिन

कि साल दर साल बीतते गए 

और आस बढ़ती गई दिनों दिन

जिल्द चढाने की न थी चाह

तो होती रही  इबादत हर पल हर  छिऩ





अर्चना टंडन 



Comments

Unknown said…
Haha ....this one got sent....even tho...page not available was coming....anyway...somehow ...now can't open the pics...can read all text

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