"उमड़ते जज़्बात" डॉ अर्चना टंडन द्वारा रचित एक कविता


दिल के जज़्बातों को पन्ने पर उकेरना

उनमें डूबते उतराते हुए भावनाओं को टटोलना

धक्कम पेल की दुनिया में

वैराग्य का एक ज़रिया बन

भीतर तक तर कर जाता है

द्रवित होता है दिल तब

और छलकता है जाम आखों से जब आत्मिक संतुष्टि लिए 

तो खुशी के आंसुओं का सैलाब बन

बह निकलता है एक दरिया

जो बहा ले जाता अपने संग

भ्रम, अंतर्वेदना और मनोव्यथा

और पीछे छोड़ जाता है

एक निर्मल द्विअर्थी जीवन की सार्थकता

©डॉ अर्चना टंडन


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