" कोविड काल का पतझड़" डॉ अर्चना द्वारा रचित कविता
सरकार बनाती रही कोविड महामारी को हराने की योजना निरंतर
किंतु अपनी मार से रंग अनेक दिखला गया कोविड काल का पतझड़
कहीं तो दहला गई लाइलाज खांसी की ख़ड़ खड़
और कहीं हो गई बीमारी कुछ क्षणों में ही छूमंतर
जनता करती रही कहीं तो बचाव के तरीकों से किनारा
तो कहीं सेवाभाव से दिखाते रहे राह डॉक्टर बन ध्रुव तारा
कहीं तो मौत बना गई दुनियाभर में कई परिवारों को गमगीन
और कहीं ये बीमारी घर में कैद परिवारों की ज़िंदगी कर गई रंगीन
रोज़ी रोटी ठप्प कर के रुला गई कहीं तो ये जनता को
तो कहीं थका गई ये परिवारों को मीलों का सफर तय करा के
प्रार्थना कर रहें सब वैक्सीन के रामबाण बनकर आने का
पतझड़ से घिरे इस संसार को वसंत बन इस बीमारी से मुक्ति दिलाने का
©डॉ अर्चना टंडन
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