"वन" डॉ अर्चना द्वारा रचित कविता



बेतरतीब फैले वन नहीं ईश्वर द्वारा सृजित उपवन हैं ये

हरित क्रांति ला धरती को संभालने की उसकी तरकीब है ये

निखरते हैं ये संभाले अपने अंदर अनमोल वन्य जीवन

कायम रखते हैं ये इस तरह धरती का संतुलन 

जंगली जीव जंतुओं के ये खजाने हैं असाधारण

जहाँ फसाने गूंजते हैं रंग बिरंगे पक्षियों के हर क्षण


मन मोह लेती है यहाँ के बहते झरनों  की गूँजती धुन

चौंक जाते हैं जीव जंतु सूखे पत्तों की चरमराहट को सुन

पेड़ों के बीच से झांकता सूरज ऐसा होता है प्रतीत

मानों स्वर्णिम सूर्योदय सारे दिन हो रहा हो फलित

वनक्षेत्र हर देश के लिए अकूत संपदा के भंडार हैं

वायु के गैस संतुलन को संभालते ये धरती के पहरेदार हैं

© डॉ अर्चना टंडन

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