"विरासत" डॉ अर्चना द्वारा रचित कविता

 


गर्व है मुझे इस देश की विरासत पर

दया और करुणा के ब्रम्हास्त्र पर

जहाँ अंकुरित हुए आध्यात्मिकता के बीज सदियों पहले

पल्लवित हुए जो वेद-पुराण की कथाओं में 

प्रदर्शित हुए अचंभित करने वाली वास्तुकला में 

और प्रसारित हुए संस्कृति बन


बिखरी जहाँ सदा त्याग और वैराग्य की सांस्कृतिक विरासत 

प्राणियों में प्रेम और भाईचारे की लौ  जगी जहाँ सर्वप्रथम


उजले भविष्य की ओर अग्रसर इस देश की

सनातनी संस्कृति में पलती सभ्यता

ही तो नींव थी

नष्ट करना चाहा जिसे आक्रांताओं ने रौंदकर

ताकि पहना सकें 

वो दासता और दयनीयता का चोला हमें कुचलकर


अब तो निकल पड़े हैं एक इरादा पाले हम

इस विरासत में मिली नींव पर खड़ी करेंगे एक इमारत बुलंद 

छोड़ जाएंगे आने वाली पीढ़ियों के लिए

एक परिवेश जहाँ फिर पाएंगे वो स्वछंद


© डॉ अर्चना टंडन

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