समाहित होना मेरा


मुझ से मुझ को कभी न जुदा सके तुम
बाहुपाश में अपने मुझे, कभी न भर सके तुम
जब से मैंने अपना अस्तिव है पाया
नहीं समझा तब से किसी को भी पराया
तभी से आगोश में रहना मुझे न भाया
तुम तक पहुँचूँ इस ख्वाइश को कभी न दर्शाया
मन ही मन तुम्हें दुनिया से छुपाया 
ताकि तुम मुझमें समा सुरक्षित रहो
पूर्ण करते रहो मुझे
अपनी समझ से 
लगातार, अनवरत दीक्षा देते रहो
उलझाते रहो मुझे अपने परिपेक्ष्य में
ताकि मैं सुलझ सकूं

- डॉ अर्चना टंडन

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