रसिका



यूँ ही नहीं खोती मैं तुम्हारे खयालों में 
खोती हूँ अपनी वीरानियाँ समेटने
सिमट कर उनमे पा जाती हूँ
फिर एक जीने की वजह
सजने-सँवरने की वजह
हंसने खिलखिलाने की वजह
और वीरनियाँ खुद ब खुद सिमट जाती हैं
जब खयाल मूर्त रूप लेता है
तुम्हारे अवतरण से

-- अर्चना टंडन

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