चाँद





चाँद


चाँद की ठंडक ने एहसास कराई
तपन सूरज की और फिर जगाई

ऐसी आस कि आग लगे तो ऐसी लगे

कि जिसके बुझने की आस फिर कभी न जगे




इस पल पल बदलती दुनिया में

क्या अँधियारा और क्या रोशनी

ज़िन्दगी एक पल की ही तो है

तो फिर क्या दिल्लगी और क्या बेखुदी 



अभी तो चंद लफ़्ज़ों में मेटा है तुझे  चाँद 
अभी तो मेरी किताबों में तेरी तफसीर बाकी है


चाँद से मिलन की तड़प ही तो लहरों की जान है। 
जो मिलन हो गया तो फिर उफान का क्या काम है
ये चाँद की  चाहत का असर है या कि मिलन की आस
कि फिर उठने की चाह है हर लहर की  गिरने के बाद



एक तू है कि जहाँ भर से ताल्लुक है तेरा

और चाहता है कि मैं तेरी ज़ार में ही रहूँ

तुझे ये हक़ है कि तू वास्ता रखे सब से

और मुझे ये भी नहीं कि वास्ता रख सकूँ अपने चाँद से

अर्चना टंडन 






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