बेटियों का रामराज्य कब

"सुदीक्षा भाटी को समर्पित"


Won Certificate of Excellence in Asian Society's Annual WordSmith's Award for Hindi Poetry for my poem " बेटियों का रामराज्य कब"


थी वो मेधावी और साधारण परिवार से आई थी

क्या इतने नंबर कोई ला सकता है जितने वो लाई थी

स्कॉलरशिप पा अमरीका में पढ़ कर कोरोनाकाल में जो घर वापस आई थी

लड़कियों की आज़ादी का सपना देखने वाली 

दुर्घटनावश क्यों काल के हाथ समाई थी


क्यों आज ये समाज इतना गर्त में खिसक गया

कि लड़कियों को एक सुरक्षित माहौल देने में विफल हो गया

क्यों रास्ते में चलना लड़कियों के लिए दूभर हो गया

और रास्तों पर मनचले लड़कों का फर्राटा भरना आम हो गया

ऐसे लड़के जो छेड़खानी करना अपना अधिकार समझने लगे

दीखने लगे ऐसे पथभ्रष्ट सड़कों पर मोटरसाइकिल या गाड़ी में सवार किसी गाड़ी के आगे पीछे होते हुए

लड़कियों को देख भद्दे मज़ाक या फबती कसते हुए

कभी पैसे और रसूक में मदहोश तो कभी शराब के नशे में चूर

दर्शाते हुए एक व्यक्तिव वीभत्स और क्रूर

समझ सकती हूँ खूब इसे क्योंकि देख चुकी हूं अपनी आंखों से ये सब

कभी किसी शराबी द्वारा आस्तीन खिंचते हुए

तो कभी थप्पड़, घूँसे से वार कर

या सूजा भोंक निर्विरोध भागते हुए


सामाजिक पतन का ये विषय कुछ गंभीर सवाल उठाता है

सामाजिक मानकों के पुनः प्रवर्तन का प्रसंग सम्मुख ला खड़ा करता है

संस्कृति एवं सभ्यता के पुनर्निर्माण की सोच को जन्म देता है

ताकि फिर न चढ़े बलि किसी आदर्श बेटी की बहुप्रतीक्षित रामराज्य में


© डॉ अर्चना टंडन

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