MY SPEECH ON WORLD MENTAL DAY ----UNDERSTANDING MENTAL ILLNESS AND HOW TO TAKE CARE OF THOSE INFLICTED WITH IT


     जैसे कि हम सबको अपने और अपने अपनों की शारीरिक स्वास्थ्य की चिंता होती है वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य की भी होनी चाहिए .जैसे शारीरिक बीमारियां होती हैं  वैसे ही मानसिक बीमारियाँ भी होती हैं .उन्हें हमें पागलपन न करार देते हुए समाज में एक जागरूकता पैदा करनी होगी कि ये भी बुखार ,DIARRHOEA ,मासिक धर्म की बीमारी या डायबिटीज और हाइपरटेंशन की तरह ही एक बीमारी है जिसकी रोकथाम व इलाज संभव है और ऐसे लोग भी आप और हम की तरह ही  साधारण जीवन व्यतीत कर सकते हैं जीवन यापन कर सकते हैं .हड्डी टूटेगी या बुखार आएगा तो वो परिलाक्षित हो जाएगा पर मानसिक बीमारियां न तो जो बीमार है वो ही बता पाएगा न ही उसके परिवारवाले ही पहचान पाएंगे .इसलिए इनका समाज द्वारा समझना और भी जरूरी हो जाता है


समाज भी इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है .समाज में तनाव जनित मानसिक रोगों के सन्दर्भ में जाग्रति पैदा करने की आवश्यकता है,ताकि समाज प्रत्येक मानसिक रोगी को पागल समझ कर अपमानित न करे बल्कि उसे समुचित सहानुभूति एवं सहयोग दे।आवश्यकतानुसार बिना देरी किये उचित इलाज की व्यवस्था की जाये ।प्रत्येक व्यक्ति को तनाव जनित परिस्थितियों से बचने के यथाशक्ति प्रयास करने चाहिए।सामाजिक वातावरण को निर्मल एवं प्रदूषण रहित बना कर इन्सान को तनावमुक्त रखने की व्यवस्था होनी चाहिए ।मानसिक चिकित्सकों को विशेष सुविधाएँ प्रदान कर उनको समाज की बेहतर सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । समाज में प्रत्येक व्यक्ति को योग साधना और व्यायाम के महत्व को समझना चाहिए।जो आज के प्रदूषित वातावरण और भाग दौड़ वाली जिंदगी में भी व्यक्ति को मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान कर सकता है।

जी करता है तुझे अपना कहना छोड़ दूं

फिर न कोई आशा न निराशा न आरज़ू 

ऐसा क्यूँ होता है कि आज भी 

मैं इन अपेक्षाओं से उभर नहीं पाती

आज़ाद होना चाह कर भी क्यूँ आज़ाद नहीं हो पाती

क्यूँ ये कशिश आज भी है  मन में

कि कहीं हम आज भी अधूरे हैं

क्यूँ अतृप्त सा ये एहसास है

 क्यूँ मैं जुदा नहीं कर पाती वो अपनी तन  मन

 से भी ऊपर उठ कर  एक चाह की अपेक्षा

जीवन में सब कुछ पा कर भी एक अधूरेपन का एहसास क्यूँ है ?

सदा मुस्कुराते रहने पर भी कहीं भीतर ये तड़प क्यूँ है ?

लोग कहते हैं आत्मा लगाव नहीं रखती

ये तो शरीर   के लगाव हैं

जब आये हैं इस जहाँ में और शरीर  एक स्वरुप है

तो शरीर  से जुडी कुछ जिम्मेदारीआं भी हैं

शरीर  से जुड़े कुछ रिश्ते भी हैं

कुछ दोस्त कुछ दुश्मन भी हैं

कुछ अपने कुछ पराये भी हैं

आत्मा के न दोस्त हैं न दुश्मन

न अपने न पराये बस ईश्वर से मिलन कि आस

तो मैं कहती हूँ आत्मा बनना आसाँ  हैं

शारीर बनना कठिन

योगी बनना आसान है

        कर्मनिष्ठ कर्मयोगी  बनना कठिन

तो तड़प मिटाने  के दो ही साधन हैं

शरीर  जो पाया है रिश्ते जो पाए हैं उन्हें निभाओ

जब ये बेशकीमती लिबास पाया है

और इससे जुड़े  अँधेरे और रौशनी का हमसाया  है

तो क्यूँ फिर ये अधूरेपन का एहसास

क्यूँ ये तड़प क्यूँ ये बेसुकूनी का बाहुपाश

इस शारीर के धर्म निभाओ

जो भी मिले हाथ जोड़ शुक्रिया मनाओ

आत्मा का ये सफ़र जो  तृप्त  हो कर गुजारोगे 

तो दोबारा  तृप्त  होने वापस इस धरती पर न आओगे

उसमे विलीन होने के लिए ही है ये सफ़र

जो समझ गए तो फिर कठिन नहीं ये  डगर



https://www.youtube.com/watch?v=C-2MHfHC9Jw&feature=youtu.be

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