असीमित निर्धारण
टापू घिरे हैं
चहुँ ओर फैले
जल से, दलदल से
फिर भी सहारा दे रहे हैं
अनगिनत रूपों में विद्यमान
जीवन को
सदियां लग जाएँगी
ये जानने में कि
वो थल के डूबते हुए हिस्से हैं
या कि उभरते हुए
सांसारिक स्वरूप जो
पल पल बदल रहा है
और सदियों से
जो खेल चल रहा है
वो दीखता कहाँ है
कभी किसी को
चक्रवात, तूफान,भूकंप
और धरती का फटना तो
क्षणिक उथल पुथल हैं
जिन्हें झेल वो फिर
जीवन को सहारा दे
एक नया स्वरूप धरता है
आज का टापू
शायद कल का
हिमशिखर है
और सदियों बाद का
समुद्रतल
डॉ अर्चना टंडन
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