आशीर्वाद



ये खेल एहसासों का
सुलगते बिखरते ख्वाबों का
उलझते सुलझते सवालों का
फैलकर कर  सिमटे अरमानों का

इम्तिहान है फखत एक
तेरे मेरे परिपेक्ष्य का
तेरी मेरी उलझनों का
सिमटे सकुचे जोश का
तेज़ होकर थमीं चंद साँसों का

पर शायद इसे इम्तिहान कहना ठीक न होगा
ये तो जवाब है
हमारे हर इक प्रश्न का
वरदान है
इक आशीर्वाद है जिसे
हमने भोगा और जिया है
अर्चना टंडन






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