उद् घोषणा




इक आह ही तो निकली थी         
टूट कर तो नहीं बिखरा था न वो
इक मोती ही तो टपका था
धाराओं में तो नहीं बहा था न वो
सहम कर छलका ही था
बिखरा तो नहीं था न वो

जिसे तुम आह समझ बैठे
वो तो सिर्फ एक उद् घोषणा थी
अंतर्द्वंद पर उसके विजय की
कोलाहल के थमने की
अन्धकार के रोशनी से रिश्ते की
और अंतहीन शुरुआत थी
फिर एक नए सफ़र की

अर्चना टंडन



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