नज़रिया


भगवान न करे कभी मेरी किस्मत

तुम्हारी किस्मत से बदल जाए

तो क्या मैं फिर भी तुम्हें गलत कह पाऊंगी


तुम्हारी जिंदगी की दास्तान 

शायद तुमसे वो करवाती हो

जो तुम मेरे चोले में न करना चाहो


वो दर्द वो चीख वो गुस्सा 

सब दर्शा देता है तुमने जो जुल्म झेला है 

दुनिया की आखों से परे


मैं तुम्हारे किरदार की हंसी न उड़ाऊंगी 

न उड़ती देख सकूंगी क्योंकि मैं 

चोला बदल समझना जानती हूं


ये संसार चलायमान है धुरी पे 

उसकी मर्जी से जहां हम तुम तो बस कठपुतली हैं 

फिर कृत्य कैसा और किसके द्वारा


कल शायद मेरे रास्ते पर तुम चलो

और मैं तुम्हारे पर चलने को मजबूर

तो क्या मैं तुम्हारा मजाक उड़ा पाऊंगी?


डॉ अर्चना टंडन


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