बौछार



गमनशीं थी 
वो ग़मज़दा
उल्फत का उनको नहीं था पता
सिमट रही थी वो अपने ही आगोश में
पता न था उसे
और वो दे रहा था उसे अपनी छतरी
भीगने से बचाने के लिए
उसे क्या पता था
कि बारिश थी उसकी कमज़ोरी
तन्हाई और बारिश उसे भी पसंद थी

डॉ अर्चना टंडन




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