ये है सर्वव्यापी का खेल-(The God In You And Me)




नहीं समझ पाई ये देने लेने का हिसाब कभी
क्या है ऐसा जो कभी किसी को कोई दे पाया 
और क्या है जो कभी किसी से कोई ले पाया
क्योंकि है सब तो नसीब का खेल ही 
 तो फिर कैसा ये एहसान 
और कैसा ये एहसान-फरामोशी का धंधा
क्योंकि हम तुम तो एक जरिया मात्र हैं
निमित्त तो अदृश्य होकर भी दृष्टिगोचर है 
विलुप्त नहीं वो विद्यमान है सर्वत्र


डॉ अर्चना टंडन


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