आत्म-साक्षात्कार
चाहा था कोई तो ऐसा हो
जो इस ज्वालामुखी के लावे
को दिशा दे सके
ज्वलंत इस आत्मा की
चीत्कार सुन सके
साक्षात्कार हुआ
जब उसकी तस्वीर से
तो यकीन हो गया
कि दर्पण में दीख रहा साया
मेरा ही प्रतिबिम्ब था
ढूंढ रही थी बाहर जिसे
वो खुद में ही कहीं मौजूद था
डॉ अर्चना टंडन
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