तटस्थ-स्थितप्रज्ञ
प्रतिबिंब आज साफ़ झलक रहा था
क्योंकि शांत था आज समुद्र
शांत थीं समुद्र की लहरें
तलहटी भी द्रष्टगोचर थी
बिखरी पड़ी थी
यहाँ अकूत सम्पदा
सुन्दर आकृतियां लेती
रंग बिरंगे मूंगे की प्रजातियां
छोटे से बड़े आकार वाली
सफ़ेद से स्याह,
नुकीली से सपाट
कुछ चमकीली,
कुछ चमक विहीन सीपियाँ
हाँ, आज स्थिर था वातावरण
थमी हुई थीं तेज हवाएँ
हवाओं के वेग से उठती लहरें
और उन लहरों के किनारों से
टकराने का शोर
आज उसे सांसारिक तिलिस्म
न तो लुभा रहा था
न बहला रहा था
न ही लहूलुहान कर रहा था
हाँ आज वो तूफानों में भी
अडिग खड़ा था
आज उसे ध्यान के लिए
आश्रम के शांत वातावरण
की तमन्ना नहीं थी
हर चीख, दर्द भरी कराहट
उत्सवों और समारोहों का शोर
उसे छू, छिटक कर बिखर रहा था
मानुषिक देह में साधुत्व
को प्राप्त किया था उसने
ये तो नहीं कह सकती
पर हाँ आज वो तटस्थ था
स्थितप्रज्ञ था
डॉ अर्चना टंडन
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