क्या क्षितिज का ही कोई स्वरूप है
कुछ लोग अधपके से होते हैं
और अधपके ही रह जाते हैं हमेशा
कभी भी क्षितिज नहीं पकड़ पाते
या यूँ कहूँ कि क्षितिज तक पहुँचने की चाहत ही नहीं होती उनमें
क्यों ऐसे लोग परिहास का कारण बनते हैं
क्यों वो विक्षिप्त समझे जाते हैं
दिशाहीन समझे जाते हैं
जबकि यथार्थ ये है
कि हर नदी का उद्गम नहीं होता
और हर नदी सागर से नहीं मिलती
हर नदी की अपनी नियति है
अपना स्वरूप है और अपना स्वभाव है
और फिर क्षितिज का भी तो
अपना कोई स्वरुप नहीं
डॉ अर्चना टंडन
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